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गल्प-समुच्च

का समय था। गृहस्थ ने देखा कि लड़कों की मण्डली स्वामीजी को जल्द छोड़नेवाली नहीं। इसलिए उसने स्नान के लिए स्वामीजी से आज्ञा माँगी। वे लोग निकट ही गङ्गातट पर स्नान करने लगे। वृद्ध ने सबसे पहले स्नान करके सन्ध्योपासना शुरू की। उसकी स्त्री और लड़की ने स्नान के लिए गङ्गा में प्रवेश किया। एक ही क्षण के बाद वृद्ध की स्त्री ने चिल्लाकर कहा—"दौडिए! दौडिए!! शारदा डूबी जाती है।" उसकी बात हम लोगों ने भी सुनी। स्वामीजी और हम सब तत्काल ही तट पर पहुँच गये। वृद्ध का चेहरा सूख गया था। उसका शरीर काँप रहा था। उसने बड़ी वेदना और निराशा-भरी दृष्टि से स्वामीजी को देखा। शारदा गङ्गा के तरंग-जाल में बेतरह फँस गई थी। उसका चेहरा विकृत होने पर भी, गङ्गा-गर्भ में अपूर्व रूप-राशि विकीर्ण कर रहा था। निस्सन्देह उसकी दृष्टि में उदासीनता और नैराश्य के चिह्न स्पष्ट दिखाई दे रहे थे। हम सब किंकर्त्तव्य विमूढ़ हुए चित्र की तरह खड़े थे। स्वामीजी ने बड़ी जोर से छलाँग मारी। वे एक ही छलाँग में शारदा के बहुत पास पहुँच गये। इसी समय फिर छपाक का शब्द हुआ। हम लोगों ने देखा कि नवीन भी तैरता हुआ स्वामीजी के पीछे जा रहा है। स्वामीजी ने बड़ी सफ़ाई से शारदा को उठा लिया। शारदा ज्ञान-शून्य हो गई थी। गङ्गा का प्रवाह खूब तेज था। स्वामीजी बहुत चेष्टा करने पर भी गङ्गा की बलवती तरंगों को, शारदा को, लिए हुए, न काट सके। हम लोगों ने देखा कि स्वामीजी बल-