सत्सङ्ग में देर हो गई।" उसने स्वामीजी की शत-मुख से प्रशंसा की। उसके कहने से मालूम हुआ कि स्वामीजी सन्यासी साधु हैं। दर्शन-शास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित हैं। परोपकारी हैं। दिन में एक बार भोजन करते हैं। यह सुनते ही मण्डली के सभ्यों की समालोचना शुरू हो गई। किसी ने वैराग्य का अर्थ बहु-राग और किसी ने एक समय भोजन करने का भाव परिपाक-शक्ति की न्यूनता बताई। नवीन ने उन सब बिना पूछी समालोचनाओं के उत्तर में एक बड़ी ही वेदना-भरी चितवन से हमारी ओर देखा। हम उसका मतलब समझ गये। वह हमसे मित्रों की कभी-कभी शिकायत किया करता था। सच तो यह है कि हममें उसकी पूज्य बुद्धि थी। वह हमारी इन बातों से नाराज़ न था। पर हमारी मानसिक अवस्था के लिए उसे दुःख ज़रूर था। हमने मित्रों को फटकार बताई और कहा कि हम सब कल प्रातः काल स्वामीजी के दर्शनार्थ चलेंगे।
(२)
प्रातः काल उठकर हम लोगों ने भ्रमण के लिए जाकर स्नान किया और स्वामीजी के दर्शन के लिए चल दिये। भगवती भागीरथी के पवित्र तट पर कई मील चल कर एक छोटा-सा मैदान मिला। वहाँ का दृश्य बहुत ही मनोहर था। गंगाजी की कलकल-ध्वनि, ज्यों-ज्यों हम ऊपर चढ़ते जाते, बढ़ती जाती थी। सब तरफ सन्नाटा था। इसी मैदान में स्वामीजी कुशासन पर ध्यान-मग्न बैठे थे। हम लोग गङ्गाजी के तट पर पड़ी एक