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वह शुभ दिन धीरे-धीरे निकट आने लगा, जिस दिन सुशीला की गोद भरी-पुरी होने वाली थी! मातृत्व ही नारी-जीवन का परम सार है और उसी सार-वस्तु की सुशीला शीघ्र ही अधिकारिणी होनेवाली है—यह जानकर सुशीला के पति सत्येन्द्र भी परम प्रसन्न हुए। दाम्पत्य-जीवन-रूपी कल्पतरु में मधुर फल के आगमन की सूचना पाकर पति-पत्नी के आनन्द का पारावार नहीं रहा।
सुशीला के सास-ससुर कोई नहीं थे; इसलिए सुशीला को कभी-कभी अन्तर्वेदना हुआ करती थी; पर वह व्यथा पति के पवित्र शीतल-प्रेम मलिल से शीघ्र ही शान्त हो जाया करती थी। सुशीला अपने गृह की एकमात्र अधिश्वरी होने के साथ-ही-साथ अपने पति के अखण्ड प्रेम की भी एकमात्र अधिकारिणी थी। सत्येन्द्र सुशीला को अपनी आत्मा का ही दूसरा स्वरूप मानते थे और वे उसे अपने गले की मणिमाला के समान बड़े आदर और यत्न