पृष्ठ:गल्प समुच्चय.djvu/२४३

यह पृष्ठ प्रमाणित है।
२३१
तूती-मैना


चुनकर, कुश से उसका मुँह बाँधकर, कमण्डल बनाया और उसी में पास ही की नदी से थोड़ा जल लाये परन्तु "प्रेम-विवश मुख आव न बानी"—साहस पर भार देकर बोले—देवि! तुच्छ आतिथ्य स्वीकार करो।

सौन्दर्य में बड़ी विलक्षण विद्युत-शक्ति है! जिसके सामने दासगण सदैव हाथ बाँधे खड़े-खड़े मुँह जोहते रहते हैं, जो प्रचुर प्रजामण्डली का भावी शास्ता है, उस समर्थशाली नृपनन्दन को भी क्षणमात्र में सौन्दर्य ने कैङ्कर्य्य सिखा दिया!

ठीक है, यदि सौन्दर्य में ऐसी अद्भुत आकर्षण-शक्ति न होती, तो मत्स्योदरी का नाम योजन-गन्धा कैसे होता? नारद के समान विरागी भजनानन्दी व्याकुलता की पराकाष्ठा तक क्यों पहुँचते? बेचारे राक्षस अमृत के बदले मदिरा क्यों पी लेते? उर्वशी भला 'नारायण' के बदले 'पुरुरवा' का नाम लेकर क्यों स्वर्ग-च्युत होती? सूर्पणखा को अपने नाक-कान कटाने की क्या पड़ी थी? गोपियाँ लोक-लाज की तिलाञ्जलि क्यों देतीं? रुक्मिणी खिड़की की राह से कृष्ण को प्रेम-पत्र क्यों भेजती? ऊषा की सखी चित्रलेखा अपनी चित्र-कला-कुशलता का परिचय कैसे देती? मानिनी राधिका के पैरों की महावर नन्दनन्दन के माथे का तिलक कैसे होती?