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गल्प-समुच्चय

मनोहर कुछ अप्रतिभ हो कर फिर आकाश की ओर ताकने लगा। थोड़ी देर बाद उससे फिर न रहा गया। इस बार उसने बड़े लाड़ में आकर अत्यन्त करुण-स्वर में कहा—ताई, पतंग मँगा दो—हम भी उड़ावेंगे।

इस बार उसकी भोली प्रार्थना से रामेश्वरी का कजेला कुछ पसीज गया। वह कुछ देर तक उसकी ओर स्थिर दृष्टि से देखती रहीं फिर उन्होने एक लंबी सांस लेकर मन-ही मन कहा— यदि यह मेरा पुत्र होता, तो आज मुझसे बढ़कर भागवान् स्त्री संसार में दूसरी न होती। निगोड़े-मारा कितना सुन्दर है, और कैसी प्यारी-प्यारी बातें करता है, यही जी चाहता है कि उठा कर छाती से लगा लें।

यह सोचकर वह उसके सिर पर हाथ फेरनेवाली ही थीं, कि इतने में मनोहर उन्हें मौन देखकर बोला—तुम हमें पतंग नहीं मँगवा दोगी तो ताऊजी से कह कर पिटवावेंगे।

यद्यपि बच्चे की इस भोलीबात में भी बड़ी मधुरता थी, तथापि रामेश्वरी का मुख क्रोध के मारे लाल हो गया। वह उसे झिड़ककर बोलीं—जा, कह दे अपने ताऊजी से। देखूँ ,वह मेरा क्या कर लेंगे।

मनोहर भयभीत होकर उनके पास से हट आया और फिर सतृष्ण नेत्रों से आकाश में उड़ती हुई पतंगों को देखने लगा।

इधर रामेश्वरी ने सोचा—यह सब ताऊजी के दुलार का फल है, कि बालिस्त-भर का लड़का मुझे धमकाता है। ईश्वर करे इस दुलार पर बिजली टूटे।

उसी समय आकाश से एक पतंग कट कर उसी छत की ओर