पास ही बाबू रामजीदास की अर्ध्दागिनी बैठी थीं। बाबू साहब ने उनकी ओर इशारा करके कहा—और अपनी ताई को नहीं ले जायगा?
बालक कुछ देर तक अपनी ताई की ओर देखता रहा। ताईजी उस समय कुछ चिढ़ी हुई-सी बैठी थीं। बालक को उनके मुख का वह भाव अच्छा न लगा। अतएव वह बोला—ताई को नहीं ले जायेंगे।
ताईजी सुपारी काटती हुई बोली—अपने ताऊजी ही को ले जा! मेरे ऊपर दया रख!
ताई ने यह बात बड़ी रुखाई के साथ कही। बालक ताई के शुष्क व्यवहार को तुरत ताड़ गया। बाबू साहब ने फिर पूछा—
"ताई को क्यों नहीं ले जायगा?"
बालक—ताई हमें प्याल (प्यार) नहीं कलतीं।
बाबू—जो प्यार करें, तो ले जायगा?
बालक को इसमें कुछ सन्देह था।ताई का भाव देखकर उसे यह आशा नहीं थी कि वह प्यार करेंगी। इससे बालक मौन रहा।
बाबू साहब ने फिर पूछा—क्यों रे, बोलता नहीं? ताई प्यार करें, तो रेल पर बिठाकर ले जायगा?
बालक ने ताऊजी को प्रसन्न करने के लिए केवल सिर हिलाकर स्वीकार कर लिया; परन्तु मुख से कुछ नहीं कहा।
बाबू साहब उसे अपनी अर्ध्दागिनीजी के पास ले जाकर उनसे बोले—लो, इसे प्यार कर लो, तो यह तुम्हें भी ले जायगा।