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गल्प-समुच्चय


आकाश नहीं गूँजा। दिगन्त मुखरित नहीं हुआ। उस दिन समुद्र तरङ्ग घोर गर्जना नहीं करती थीं। उस दिन गुर्जर की सौन्दर्यशालिनी भूमि विभीषिकामय श्मशान के समान हो गई थी।

भगवान् सोमनाथ श्मशान ही में रहते हैं। वही उनका निवास स्थान है; पर इस श्मशान में चिता-भस्म नहीं है। उनके स्थान में उनके एकान्त भक्त गुजरवासियों का हृदय-शोणित बह रहा है।

क्रमशः रजनी गम्भीर होने लगी। अन्धकार बढ़ने लगा। कमलावती अपने पिता की मृत-देह के लिए चिता रचकर भैरव के साथ फिर युद्ध-भूमि में आई। उस महाश्मशान में वह प्रेतनी के समान घूम रही है। पीछे-पीछे मशाल हाथ में लिए भैरव था। भैरव मृत-देहों के मुख के पास मशाल ले जाता था। फिर निराशा पूर्ण स्वर से कहता था—नहीं, नहीं ये कुमार नहीं हैं। वायु भी हताश होकर कहता था—नहीं ये कुमार नहीं हैं। उस श्मशान-क्षेत्र में स्थित वृक्षों के पत्ते भी कहने लगते—नहीं, ये कुमारसिंह नहीं है। चन्द्र-हीन अकाश-मंडल के तारे भी कह उठते थे— कुमारसिह कहाँ हैं? उन्हें कहाँ खोजती हो? वे तो हमारे राज्य मे हैं कमलावती निराश होकर फिर दूसरा मृत देह की ओर जाती थी।

इसी समय उस अन्धकार-मय श्मशान-भूमि में दो मनुष्य का आकृत दीख पड़ी। मूर्तिद्वय, भैरव और कमलावती के समीप आये। कमलावती ने उन दोनों को पहचान लिया और भैरव ने भी। उनमें से एक शाह जमाल था और दूसरा रुस्तम।