शाह जमाल—गुर्ज्जर की सेना खूब सुरक्षित है।
सुलतान—जानता हूँ; पर मुझे आश्चर्य है कि ग़ज़नी का भविष्य अधिकारी अफ़ग़ान-सैनिक का बल नहीं जानता!
शाह जमाल के हृदय में यह बात तीर-सी लगी। उसने तेजी से कहा—जहाँपनाह, हम केवल पाँच हजार सेना लेकर युद्ध में जाने के लिए प्रस्तुत हैं। आपके आशीर्वाद से मैं इतनी ही सेना से गुर्ज्जर-विजय करूंँगा। यदि नहीं, तो युद्ध में ही प्राण-त्याग करूँगा; लौटूंगा नहीं।—सुलतान शाह जमाल को पुत्र के समान चाहता था। यह बात सुनकर उसके नेत्रों में जल भर आया। उसने कहा—जमाल, हम तुम्हें दस हजार सेना देंगे; पर तीन हजार रुस्तम के अधीन रहकर तुम्हारी पार्श्व-रक्षा करेगी। कल ही युद्ध-यात्रा करो। हाँ, एक बात और कहनी है, गुर्ज्जर-पति को बन्दी कर हमारे पास भेजना। यदि जीता हाथ न आवे, तो सिर काटकर भेजना।
शाह—जहाँपनाह, मैं वैसा ही करूँगा।
सुलतान—हाँ और एक बात।
शाह—आज्ञा।
सुलतान—हम सुनते हैं, गुर्ज्जर-राज कन्या कमलावती अत्यन्त सुन्दरी है। हम उसे बेगम बनाना चाहते हैं; इसलिये तुम उसे सम्मान-सहित हमारे पास भेजना।
शाह जमाल के मस्तक पर सहसा वज्रपात हो गया। सारा संसार अन्धकार-मय बोध होने लगा; पर उपाय क्या था?