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कमलावती


अतिथि हैं।—भैरव ने तुरन्त ही अपने हृदय की उत्तेजना को दबा लिया; पर इतना उसने समझ लिया, कि गुर्जर पर यवन लोग शीघ्र ही आक्रमण करेंगे; परन्तु इस बार सोमनाथ के विश्व विश्रुत ऐश्वर्य के लिये नहीं, कमलावती के लिये। शाहज़ादा के हृदय में एक भीषड़ अग्नि धधक रही थी, उसी की शान्ति के लिये वह किसी-न-किसी दिन गुज्जर पर विपद् लावेगा।

(६)

महमूदाबाद आकर शाह जमाल ने सुना, कि सुलतान महमूद आखेट के लिये निकले हैं। शाहज़ादा वहीं सुलतान की राह देखने लगा। रुस्तम भी उसके साथ ठहरा रहा।

यहाँ आकर रुस्तम ने देखा, कि शाहज़ादा अब हमको प्रसन्न करने की चेष्टा में सदा लगा रहता है। चालाक रुस्तम समझ गया कि शाह जमाल क्यों खुशामद करता है। बात यह थी, कि रुस्तम सुलतान का प्रधान सेनापति था। फिर उस पर सुलतान का पूर्ण विश्वास था। शाहज़ादे ने सोचा, कि रुस्तम से विवाद करना अच्छा न हुआ। क्षण-भर में उत्तेजना के वश उसने जो कुछ कह डाला था, उसके लिये वह पश्चाताप करने लगा। फिर उन्हें भय था, कि रुस्तम कहीं यह सब बात सुलतान से जाकर न कह दे। यही सब सोच-विचार कर शाह जमाल रुस्तम की खुशामद में लगा रहता था। रुस्तम शाह जमाल पर आन्तरिक स्नेह रखता था। वह कभी नहीं चाहता था, कि शाह का कुछ अनिष्ट हो।