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गल्प-समुच्चय

रुस्तम—बन्दी होने में अब क्या कसर है?

शाह—और यह रमणी कौन है ?

रुस्तम—हुजूर, मैं कुछ नहीं कह सकता।

और कुछ बात नहीं हुई। इसी समय भैरव चार भृत्यों के साथ आ पहुँचा।

भैरव बोला—हमारी माताजी का अनुरोध है कि अब अब आप लोग भोजन करें। यहाँ जो कुछ मिल सकता है, वही आपके लिए लाया गया है। फल, कन्द-मूल और दुग्ध को छोड़ और कुछ नहीं है। कल प्रातःकाल माताजी से साक्षात् होगा।—भैरव चला गया और ये लोग भोजन कर सोने की चेष्टा करने लगे। शाहज़ादे को छोड़, घड़ी-भर में सब घोर निन्द्रा में अचेत हो गये।

शाहज़ादे को नींद नहीं आई। वह जागता ही रहा। आज तक शाहज़ादे के हृदय में किसी रमणी का चित्र अंकित नहीं हुआ था; पर उस गुर्जर-रमणी के अपूर्व-सौंदर्य, अगम्य साहस और आतिथ्य-सत्कार ने उसके हृदय पर एक बड़ा आघात कर दिया था। उस आघात के कारण उसका हृदय जल रहा था। शाहज़ादे को ज़रा भी शान्ति नहीं मिलती थी।

रात व्यतीत हो गयी। आकाश में प्रातःकाल की लालिमा फैलने लगी। रुस्तम भी सोकर उठा और चारों सैनिक भी। भैरव फिर आया। शाहजादे को प्रणाम कर बोला—रानीजी जानना चाहती हैं, कि आप लोगों को कल कुछ कष्ट तो नहीं हुआ?