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अनाथ-बालिका

इसके बाद डाक्टर साहब ने रोगिणी की नब्ज़ आदि देखी। देखने से डाक्टर साहब को मालूम हो गया कि रोगिणी का रोग-विषयक बयान बहुत कुछ ठीक है।

उसी दिन शाम को रोगिणी इस संसार से चल बसी।

(२)

विस्मृति भी बड़े काम की चीज़ है। यह न होती, तो मनुष्य का जीवन बहुत बुरा हो जाता। जन्म से लेकर आज तक हमको जिन-जिन दुःखों, क्लेशों ओर सङ्कटों का सामना करना पड़ा है,वे सब-के-सब यदि हर समय हमारी आँखों के सामने खड़े रहते,तो हमारा जीवन भयानक हो जाता। अकेली विस्मृति ही उनसे हमारी रक्षा करती है।

सरला ने मातृ-वियोग को सह लिया। माता की याद धीरे-धीरे विस्मृति के गर्भ में छिपने लगी। अब उसकी जीवन-पुस्तक का एक नया, पर चमचमाता हुआ, पृष्ठ खुला। छोटे-से झोंपड़े से निकलकर अब उसने महल को मात करनेवाले डाक्टर राजा-बाबू के मकान में प्रवेश किया। माता की छत्रच्छाया उठ गई,डाक्टर की वृद्धा माता की गोद का आश्रय मिला; पर उसमें भी उसने वही स्नेह-रस-परिप्लुत अभय दान पाया।

सरला ने पहले तो कुछ सङ्कोच अनुभव किया; पर अन्नपूर्णा की ममता-पूर्ण और डाक्टर साहब की स्नेह-भरी बातों ने उसको बता दिया कि वह मानों अपने ही घर में है। डाक्टर साहब ने सरला की शिक्षा का भी समुचित प्रबन्ध कर दिया।