यह उसके चारों पुत्रों में सबसे बुद्धिमान और साहसी था। रानी उसे सबसे अधिक प्यार करती थी। जब छत्रसाल ने आकर रानी को प्रणाम किया, तो उसके कमलनेत्र सजल हो गये और हृदय से दीर्घ निःश्वास निकल आया।
छत्रसाल—माता, मेरे लिये क्या आज्ञा है?
रानी—आज लड़ाई का क्या ढंग है?
छत्रसाल हमारे पचास योद्धा अब तक काम आ चुके हैं।
रानी—बुँदेलों की लाज अब ईश्वर के हाथ है।
छत्रसाल—हम आज रात को छापा मारेंगे।
रानी ने संक्षेप में अपना प्रस्ताव छत्रसाल के सामने उपस्थित किया और कहा—"यह काम किसको सौंपा जाये ?
छत्रसाल—मुझको।
"तुम इसे पूराकर दिखाओगे?",
"हाँ, मुझे पूर्ण विश्वास है।"
"अच्छा जाओ, परमात्मा तुम्हारा मनोरथ पूरा करे।"
छत्रसाल जब चला, तो रानी ने उसे हृदय से लगा लिया और तब आकाश की ओर दोनों हाथ उठाकर कहा—दयानिधे, मैंने अपना तरुण और होनहार पुत्र बुँदेलों की आन के आगे भेंटकर दिया। अब इस आन को निभाना तुम्हारा काम है। मैंने बड़ी मूल्यवान वस्तु अर्पित की है। इसे स्वीकार करो।
( ८ )
दूसरे दिन प्रातःकाल सारन्धा स्नान करके थाल में पूजा की