से गाड़ी में बैठे-बैठे थक-सा गया हूँ; इसलिये थोड़ी दूर पैदल चलने को तबीयत चाहती है।
डाक्टर साहब पेचदार गलियों से निकलते हुए एक बहुत छोटे मकान में दाखिल हुए। मकान की अवस्था देखते ही डाक्टर साहब ने समझ लिया कि इसमें रहने वालों पर चिरकाल से लक्ष्मीजी का कोप मालूम होता है। उन्होंने मकान के भीतर जाकर देखा कि एक छप्पर के नीचे चारपाई पर लड़की की माँ लिहाफ़ ओढ़े लेटी हुई है। आँगन में नीम का एक पेड़ है। उसके पत्तों से आँगन भर रहा है। मालूम होता है कि कई दिनों से घर में झाडू तक नहीं लगाई गई। लडकी ने अपनी माँ की चारपाई के पास पहले से ही एक मूँढ़ा बिछा रखा था; क्योंकि उसने अपनी माँ से सुना था कि कोई भी ग़रीब आदमी डाक्टर साहब के घर से निराश नहीं लौटाया जाता। डाक्टर साहब मुंँढ़े पर बैठ गये। लड़की ने माँ के कान में ज़ोर से आवाज दी कि डाक्टर साहब आ गये। माँ ने मुँह पर से लिहाफ़ उठाया। यद्यपि बीमारी की तकलीफ के कारण उसके चेहरे पर उदासी छाई थी, तथापि उस उदासी के अन्दर से भी डाक्टर साहब ने उसके हृदय की पवित्रता और मानसिक दृढ़ता की निर्मल किरणों को छनते हुए देखा। उन्होंने यह भी जान लिया कि भगवान् अदृष्ट के कोप से यद्यपि यह रोगिणी इस छोटे से मकान में टूटे-फूटे सामान के साथ रहने को विवश कर दी गई है; किन्तु एक दिन यह ज़रूर अच्छे घर और बड़े सामान के