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कामना-तरू


सब लोग कहते हैं कि यह वही चन्दा है। अब भी कुँअर के वियोग में विलाप कर रही है । मुझे भी ऐसा ही जान पड़ता है। आज न-जाने क्यों मगन है।

किसान तम्बाकू पीकर सो गया। कुँअर कुछ देर तक खोया हुआ-सा खड़ा रहा। फिर धीरे से बोला-चन्दा, क्या सचमुच तुम्ही हो? मेरे पास क्यों नहीं आती?

एक क्षण में चिड़िया आकर उसके हाथ पर बैठ गई। चन्द्रमा के प्रकाश में कुँअर ने चिड़िया को देखा। ऐसा जान पड़ा, मानो उनकी आँखें खुल गई हों, मानों आँखों के सामने से कोई आवरण हट गया हो। पक्षी के रूप में भी चन्दा की मुखाकृति अंकित थी।

दूसरे दिन किसान सोकर उठा, तो कुँअर की लाश पड़ी हुई थी।

( ८ )

कुँअर अब नहीं हैं; किन्तु इनके झोंपड़े की दीवारें बन गई हैं, ऊपर फूस का नया छप्पर पड़ गया है और झोंपड़े के द्वार पर फूलों की कई क्यारियाँ लगी हुई हैं। गाँव के किसान इससे अधिक और क्या कर सकते थे।

उस झोंपड़े में अब पक्षियों के एक जोड़े ने अपना घोंसला बनाया है। दोनों साथ-साथ दाने-चारे की खोज में जाते हैं, साथ-साथ आते हैं। रात को दोनों उसी वृक्ष की डाल पर बैठे दिखाई देते हैं। उनका सुरम्य संगीत, रात की नीरवता में दूर तक सुनाई