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गल्प-समुच्चय


एक गम्भीर शब्द तहखाने में भर गया––"बदनसीब नौजवान! क्या होश-हवास में है?"

युवक ने तीव्र स्वर में पूछा––"कौन?"

जवाब मिला––"बादशाह"

युवक ने कुछ भी अदब किये बिना कहा––"यह जगह बादशाहों के लायक़ नहीं है––क्यों तशरीफ़ लाये हैं?"

"तुम्हारी कैफियत नहीं सुनी थी, उसे सुनने आया हूँ।"

कुछ देर चुप रहकर युवक ने कहा––"सिर्फ सलीमा को झूठी बदनामी से बचाने के लिये कैफीय देता हूँ, सुनिए––सलीमा जब बच्ची थी, मैं उसके बाप का नौकर था। तभी से मैं उसे प्यार करता था। सलीमा भी प्यार करती थी; पर वह बचपन का प्यार था। उम्र होने पर सलीमा परदे में रहने लगी, और फिर वह शाहंशाह की बेगम हुई। मगर मैं उसे भूल न सका। पाँच साल तक पागल की तरह भटकता रहा। अन्त में भेष बदलकर बाँदी की नौकरी कर ली। सिर्फ उसे देखते रहने और खिदमत करके दिन गुज़ार देने का इरादा था। उस दिन उज्ज्वल चाँदनी, सुगन्धित पुष्पराशि, शराब की उत्तेजना और एकान्त ने मुझे बेबस कर दिया। उसके बाद मैंने आंचल से उसके मुख का पसीना पोंछा, और मुँह चूम लिया। मैं इतना ही ख़तावार हूँ। सलीमा इसकी बाबत कुछ नहीं जानती।"

बादशाह कुछ देर चुप-चाप खड़े रहे। इसके बाद वह बिना ही दरवाज़ा बन्द किए धीरे-धीरे चले गए!