सलीमा ने कहा––"इधर जहाँपनाह कुछ कम आने लगे हैं। इसी से तबीयत जरा उदास रहती है।"
बाँदी––"सरकार! प्यारी चीज़ न मिलने से इंसान को उदासी आ ही जाती है। अमीर और गरीब, सभी का दिल तो दिल ही है।"
सलीमा हँसी। उसने कहा––"समझी, तब तू किसी को चाहती है? मुझे उसका नाम बता, मैं उसके साथ तेरी शादी करा दूँगी"
साक़ी का सिर घूम गया। एकाएक उसने बेगम की आँखों से आँख मिलाकर कहा––"मैं आपको चाहती हूँ!"
सलीमा हँसते-हँसते लोट गई। उस मदमाती हँसी के वेग में उसने बाँदी का कम्पन नहीं देखा। बाँदी ने वंशी लेकर कहा––"क्या सुनाऊँ?"
बेगम ने कहा––"ठहर" कमरा बहुत गर्म मालूम देता है। इसके तमाम दरवाजे और खिड़कियाँ खोल दे। चिरागों को बुझा दे, चटखती चाँदनी का लुत्फ उठाने दे, और वे फूल मालाएँ मेरे पास रख दे।"
बाँदी उठी। सलीमा बोली––"सुन, पहले एक ग्लास शरबत दे, बहुत प्यासी हूँ।"
बाँदी ने सोने के ग्लास में ख़ुशबूदार शरबत बेगम के सामने ला धरा। बेगम ने कहा––"उफ् यह तो बहुत गर्म है। क्या इसमें गुलाब नहीं दिया?"
बाँदी ने नम्रता से कहा––"दिया तो है सरकार!"