कवि का स्वभाव और भी अधिक कोमल होता है-उस में सहदयता की मात्रा अधिकता से रहती है। इस प्रकार के दुर्व्यवहार, अत्याचार और अन्याय को देख कर कोमल हृदय पर जो गहरी चोट लगता है, उसे कविता द्वारा प्रकट कर दूसरों को अनुभव करा देना कषि का ही काम है। परन्तु इस कार्य को वहीं प्रतिभाशाली कवि कर सकता है जिसकी कविता के अक्षर-अक्षर से माधुर्य टपकता हो, शब्द-शब्द में मौलिकता भरी हो, पंक्ति- पंक्ति पर प्रसादगुण पाया जाता हो। शब्द भाण्डार एवम् अलङ्कार शास्त्र पर भी पूरा अधिकार रखता हो।
कविधर पं० माथूरामशङ्कर शर्मा की गणना ऐसे ही कवियों में है। हर्ष की बात है कि गर्भ रण्डा रहस्य' प्रापही की भोजस्विनी लेखनीद्वारा लिखा गया है। इसमें शङ्कर जी ने अपनी नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा शक्ति से एक कल्पित कथा द्वारा विधवाओं की जो ज़बरदस्त वकालत की है वह पढ़ने ही से जानी जा सकती है। प्रायने विधवाश्री की दशा का जो विचित्र चित्र खीचा है उसे देख कर हृदय में सहसा, दुःख, घृणा, करुणा, श्राश्चर्य, भय, और अानन्द के भाव जाग्रत् होने लगते हैं। यह कल्पित कथा पढ़ने वाले को पकड़ कर उसक हदय को जकड़ लेती है। मूर्खा स्त्रियो को बहका कर धूर्त लोग किस प्रकार स्वार्थ सिद्ध करते है-'पंडिताई' और 'पुरोहिताई' का जटिल जाल फैलाकर विवेकशुन्य वञ्चक किस प्रकार गर्भस्थ बालक के जीवन को नए-भ्रष्ट कर डालते हैं- प्रतारक पंचों के प्रचण्ड प्रपंच में पड़ सरल स्वभाव सजनों को किस प्रकार कष्ट कल्पनापूर्वक काल काटना