से भरपूर करेगी। क्या विधवाओं के साथ ऐसा व्यवहार करना ठीक है? क्या ऐसा करने से वे मान-मर्यादा के महत्त्व को समझती हुई ब्रह्मचर्यव्रत-पालन कर सकती हैं? क्या इस अन्यायपूर्ण धाँधलबाज़ी का कभी श्रेयस्कर परिणाम निकल सकता है? कदापि नही! कदापि नहीं!!
विधवा रिस रोक रो रही है।
लाखों कुल-कानि खो रही है॥
जारों के गर्भ धारती हैं।
जनती हैं और मारती है॥
जो विधवाएँ प्रसन्नतापूर्वक ब्रह्मचारिणी रहना चाहे, रहें-बड़ी उत्तम बात है पर, उन्हें बलपूर्वक ऐसा करने को बाध्य करना अनुचित और अन्याय है। ऐसा करने से अच्छा परिणाम निकलने के बदले, आये दिन गर्हित गुप्त रहस्यों का भयानक भण्डाफोड़ हुआ करता है। समय पाकर सुसभ्य एवम् सुनागरिक बननेवाले बालकों को, जारज होने के कारण, जाति और कुल के अत्याचार तथा झूँठी लोकलज्जावश विधवाएँ उदर ही में दबोच डालती हैं। हम पूछते हैं कि 'सत्याचार' के नाम पर यह 'हत्याचार' नही तो क्या है? जिन लोगों में विधवा-विवाह की सुप्रथा प्रचलित है क्या उनमें कभी इस प्रकार की भ्रूण-हत्याएँ सुनी गई हैं? क्या वे जाति और कुल के भीषण भयङ्कर अत्याचार की भयावनी विभीषिका से भयभीत हो अपने अङ्गजों को अङ्ग-भङ्ग कर सकते हैं?
यों तो कदाचित् ही कोई विचारशील सज्जन होगा जो विधवाओं की दयनीय दुर्दशा से द्रवित हो उनके दुसह दुःख दूर करने को चिन्ता में निमग्न न हो, पर, तो भी