पृष्ठ:गर्भ-रण्डा-रहस्य.djvu/५८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गर्भ-रण्डा-रहस्य। ( 9 नाच नाच कर छैल, पथिक रसियागात थे। वहुधा मुझ को नारि, मदन की बतलाते थे। अटका एक उतार, टोंक जननी पर छोड़ी। बोला कर कुछ दान, जिये यह सारस-जोड़ी। (१६५) काट सका दिन काट, जिसे रथामास्त-चाली। छकड़े ने वह गैल, घड़ी भर में चल डाली। अगर्भरण्डा के माग में छल-अधिक जो अश्लील रसिया गातेथे उन मे से एक अच्छा सा छॉट कर यहां निदर्शन रूप से लिखा जाता है ) भगत बुढापे मे ॥ टेक ॥ छोडा डकेता के डेरो में जाना, झाके न वारी के टापे में। भगत बुढापे मे ॥ बैठा ठिकाने पै देवो को पजे, पॅजी लगादी पुजाप में भगत बुढापे मे ॥ बाती जवानी की मैली पिछोरी, धोने को पाया है श्रापे मे । भगत बुढापे में ॥ खोजायगा शङ्करादर्श ऐसा जोप छपेगा न छापे मे । ठग बनगया २ .गन वुढापे मे ॥ । रथेन वायुवेगेन-जगाम गोकुलंप्रति । श्री भा. स्कं.१० अक्रर जो कर कंस के कहने से वायु वेग-गामी रथ पर चढ़ कर मर्योदय पर चले और सॉझ को मथुरा से गोकुल पहुंचे वही ढाई कोस का मार्ग गर्भरण्टा के तागे ने केवल घड़ी भर में चल डाला ! ठग बनगया ठग बनगया २ ठग बनगया २ ठग बनगया २