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गर्म-रएडा-रहस्य। कर दोनों गुण मेल, शरण समता की आये। सुभग अनुष्णाशीत, प्रकृति ने दृश्य दिखाये॥ रवि किरणों से मेल, पलल* करते हैं जैसा। पत्र, पुप्प, फल आदि, पकड़ते हैं रंग वैसा ॥ मिश्रित रङ्ग अनेक, मिले सतरङ्गी निधि से। मदनदेव के वाण, बने नैसर्गिक विधि से ॥ (१५८) उमगा वीर वसन्ता, किये गुष्पित वन सारे। कोइल, कोकिल कूक, उठे मधुकर गुञ्जारे॥ सुखदस्पर्श सुवास, बसादी मन्द पवन में। रतिवल्लभ की ज्योति, जगी मेरे तन-मन में ॥ (१५६) यौवन-वन में बीज, उगा रस-रीति-लता का। टूट गया व्रत-बेणु, गिरी हरि-भक्ति पताका॥
- पलल-अजोत्पादक महासूक्ष्म दर-अण विशेष ।
वसन्त-विकाश । (दोहा)-रहे न साथी शीत के, शिशिर और हेमन्त । मित्र मार शृङ्गार का, उमगा वीर वसन्त ।।