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गर्भ-रण्डा-रहस्य।

(१०२)


व्रजमण्डल में विश्व,-विलासी वल्लभकुल है।
जिस के पास असीम, दया आनन्द अतुल है॥
उस कुल के गोस्वामि, जगद्गुरु गोकुलवासी।
कर देंगे कृतकृत्य, इसे कर अपनी दासी॥

(१०३)


पाय मंत्र उपदेश, सदा शुभ काम करेगी।
कर गुरु को सर्वस्व, समर्पण नाम करेगी॥
इस प्रकार से शील,-शिरोमणि होसकती है।
मगन रहैगी, लाज, नकुल की खोसकती है॥

(१०४)


था मुख बन्द न दंश, दिया मा की अनबन में।
पर मैं अपने आप, लगी कहने यों मन में॥
वृष बिजार गोस्वामि, अवश्य कहा सकते हैं।
इस "पदवी" को सभ्य, सुबोध न पा सकते हैं॥

(१०५)


मा का विशद विचार, पड़ोसिन के मनभाया।
कहने लगी उपाय, हाथ उत्तमतर आया॥
भवसागर को पार, करेगी तुरत नवेली।
वल्लभ-कुल की वीर, करादे चटपट चेली॥