यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ६ )
का दलन करने के लिए 'डायनामाइट' का प्रयोग करें।
निराशा-निशा में बैठ कर श्रालस्य-असुर की अर्चना करने वाले कर्महीन कायरो! उठो, हाथ-पाँव हिलाकर कुछ करना सीखो-जाति-सुधार और देश-उद्धार में संलग्न रहने वाले निपुण नेताओं का अनुगमन करो-उन्हें सहा- यता दो और साहस रक्खो। एक दिन आवेगा और अवश्य श्रावेगा जब आप अपने देश-जाति, पुर नगर, घर वार आदि सब को सुसम्पन्न एवम् समृद्धिशाली देखेंगे। बिचारी विधव एं 'सधवा' होकर रोमाञ्चकारी आर्तनाद के स्थान में प्रानन्दप्रद मङ्गलगान करती हुई अपनो सन्तान को देश और जाति के ऊपर निछावर करेंगी। "विदुषी उपजे, क्षमता न तजें, व्रत धार भनें, सुकृती वर को। सधवा सुधेरें, विधवा उबरें, सकलङ्क करें, न किसीघर को॥ दुहिता न बिके, कुटनी न टिकें, कुलबोर छिके, तरसें दर को। दिन फेर पिता, वर दे सविता. कर दे कविता, कविशङ्करको।"
हरदुआगज
दीपावली
१९७६
हरिशङ्कर शर्मा,