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चमाचम! देखो तो आँखें ठंडी हो जाएँ।

इतने में किसी ने नीचे से आवाज दी-बाबूजी, सेठ ने रुपए के लिए भेजा है।

दयानाथ स्नान करने अंदर आ रहे थे, सेठ के प्यादे को देखकर पूछा-कौन सेठ, कैसे रुपए? मेरे यहाँ किसी के रुपए नहीं आते!

प्यादा-छोटे बाबू ने कुछ माल लिया था। साल भर हो गए, अभी तक एक पैसा नहीं दिया। सेठजी ने कहा है, बात बिगड़ने पर रुपए दिए तो क्या दिए। आज कुछ जरूर दिलवा दीजिए।

दयानाथ ने रमा को पुकारा और बोले-देखो, किस सेठ का आदमी आया है। उसका कुछ हिसाब बाकी है, साफ क्यों नहीं कर देते? कितना बाकी है इसका? रमा कुछ जवाब न देने पाया था कि प्यादा बोल उठा-पूरे सात सौ हैं, बाबूजी! दयानाथ की आँखें फैलकर मस्तक तक पहुँच गई–सात सौ! क्यों जी, यह तो सात सौ कहता है? रमा ने टालने के इरादे से कहा-मुझे ठीक से मालूम नहीं।

प्यादा—मालूम क्यों नहीं? पुरजा तो मेरे पास है। तब से कुछ दिया ही नहीं, कम कहाँ से हो गए?

रमा ने प्यादे को पुकारकर कहा-चलो तुम दुकान पर, मैं खुद आता हूँ। प्यादा हम बिना कुछ लिए न जाएँगे, साहब! आप यों ही टाल दिया करते हैं और बातें हमको सुननी पड़ती हैं।

रमा सारी दुनिया के सामने जलील बन सकता था, किंतु पिता के सामने जलील बनना उसके लिए मौत से कम न था। जिस आदमी ने अपने जीवन में कभी हराम का एक पैसा न छुआ हो, जिसे किसी से उधार लेकर भोजन करने के बदले भूखों सो रहना मंजूर हो, उसका लड़का इतना बेशर्म और बेगैरत हो! रमा पिता की आत्मा का यह घोर अपमान न कर सकता था। वह उन पर यह बात प्रकट न होने देना चाहता था कि उनका पुत्र उनके नाम को बट्टा लगा रहा है। कर्कश स्वर में प्यादे से बोला-तुम अभी यहीं खड़े हो? हट जाओ, नहीं तो धक्का देकर निकाल दिए जाओगे।

प्यादा हमारे रुपए दिलवाइए, हम चले जाएँ। हमें क्या आपके द्वार पर मिठाई मिलती है! रमानाथ—तुम न जाओगे! जाओ लाला से कह देना नालिश कर दे।

दयानाथ ने डाँटकर कहा-क्या बेशर्मी की बातें करते हो जी, जब गिरह में रुपए न थे तो चीज लाए ही क्यों? और लाए तो जैसे बने, वैसे रुपए अदा करो। कह दिया, नालिश कर दो। नालिश कर देगा तो कितनी आबरू रह जाएगी? इसका भी कुछ खयाल है! सारे शहर में उँगलियाँ उठेंगी, मगर तुम्हें इसकी क्या परवाह? तुमको यह सूझी क्या कि एकबारगी इतनी बड़ी गठरी सिर पर लाद ली? कोई शादी-ब्याह का अवसर होता तो एक बात भी थी और वह औरत कैसी है, जो पति को ऐसी बेहूदगी करते देखती है और मना नहीं करती। आखिर तुमने क्या सोचकर यह कर्ज लिया? तुम्हारी ऐसी कुछ बड़ी आमदनी तो नहीं है!

रमा को पिता की यह डाँट बहुत बुरी लग रही थी। उसके विचार में पिता को इस विषय में कुछ बोलने का अधिकार