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रमा को रात भर नींद न आई। यदि आज उसे एक हजार का रुक्का लिखकर कोई पाँच सौ रुपए भी दे देता तो वह निहाल हो जाता, पर अपनी जान-पहचान वालों में उसे ऐसा कोई नजर न आता था। अपने मिलने वालों में उसने सभी से अपनी हवा बाँध रखी थी। खिलाने-पिलाने में खुले हाथों रुपया खर्च करता था। अब किस मुँह से अपनी विपत्ति कहे वह पछता रहा था कि नाहक गंगू को रुपए दिए। गंगू नालिश करने तो जाता न था। इस समय यदि रमा को कोई भयंकर रोग हो जाता तो वह उसका स्वागत करता। कम-से-कम दस-पाँच दिन की मुहलत तो मिल जाती, मगर बुलाने से तो मौत भी नहीं आती! वह तो उसी समय आती है, जब हम उसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं होते। ईश्वर कहीं से कोई तार ही भिजवा दे, कोई ऐसा मित्र भी नजर नहीं आता था, जो उसके नाम फर्जी तार भेज देता। वह इन्हीं चिंताओं में करवटें बदल रहा था कि जालपा की आँख खुल गई। रमा ने तुरंत चादर से मुँह छिपा लिया, मानो बेखबर सो रहा है। जालपा ने धीरे से चादर हटाकर उसका मुँह देखा और उसे सोता पाकर ध्यान से उसका मुंह देखने लगी। जागरण और निद्रा का अंतर उससे छिपा न रहा। उसे धीरे से हिलाकर बोली-क्या अभी तक जाग रहे हो?

रमानाथ-क्या जाने, क्यों नींद नहीं आ रही है? पड़े-पड़े सोचता था, कुछ दिनों के लिए कहीं बाहर चला जाऊँ। कुछ रुपए कमा लाऊँ।

जालपा–मुझे भी लेते चलोगे न?

रमानाथ-तुम्हें परदेश में कहाँ लिये-लिये फिरूँगा?

जालपा तो मैं यहाँ अकेली रह चुकी। एक मिनट तो रहूँगी नहीं, मगर जाओगे कहाँ?

रमानाथ-अभी कुछ निश्चय नहीं कर सका हूँ। जालपा तो क्या सचमुच तुम मुझे छोड़कर चले जाओगे? मुझसे तो एक दिन भी न रहा जाए। मैं समझ गई, तुम मुझसे मुहब्बत नहीं करते। केवल मुँह देखे की प्रीति करते हो। रमानाथ–तुम्हारे प्रेम-पाश ने ही मुझे यहाँ बाँध रखा है। नहीं तो अब तक कभी चला गया होता।

जालपा–बातें बना रहे हो अगर तुम्हें मुझसे सच्चा प्रेम होता, तो तुम कोई परदा न रखते। तुम्हारे मन में जरूर कोई ऐसी बात है, जो तुम मुझसे छिपा रहे हो। कई दिनों से देख रही हूँ, तुम चिंता में डूबे रहते हो, मुझसे क्यों नहीं कहते? जहाँ विश्वास नहीं है, वहाँ प्रेम कैसे रह सकता है? रमानाथ—यह तुम्हारा भ्रम है, जालपा! मैंने तो तुमसे कभी परदा नहीं रखा। जालपा तो तुम मुझे सचमुच दिल से चाहते हो? रमानाथ—यह क्या मुँह से कहूँगा जभी! जालपा–अच्छा, अब मैं एक प्रश्न करती हूँ। सँभले रहना। तुम मुझसे क्यों प्रेम करते हो! तुम्हें मेरी कसम है, सच बताना।

रमानाथ—यह तो तुमने बेढब प्रश्न किया। अगर मैं तुमसे यही प्रश्न पूछं तो तुम मुझे क्या जवाब दोगी? जालपा-मैं तो जानती हैं।