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समाता था। क्या यह घर ऐसी अनन्य सुंदरी के योग्य था? जालपा के पिता पाँच रुपए के नौकर थे, पर जालपा ने कभी अपने घर में झाड़ न लगाई थी। कभी अपनी धोती न छाँटी थी। अपना बिछावन न बिछाया था, यहाँ तक कि अपनी धोती की खोंच तक न सी थी। दयानाथ पचास रुपए पाते थे, पर यहाँ केवल चौका-बासन करने के लिए महरी थी। बाकी सारा काम अपने ही हाथों करना पड़ता था। जालपा शहर और देहात का फर्क क्या जाने! शहर में रहने का उसे कभी अवसर ही न पड़ा था। वह कई बार पति और सास से साश्चर्य पूछ चुकी थी—क्या यहाँ कोई नौकर नहीं है?

जालपा के घर दूध-दही-घी की कमी नहीं थी। यहाँ बच्चों को भी दूध मयस्सर न था। इन सारे अभावों की पूर्ति के लिए रमानाथ के पास मीठी-मीठी बड़ी-बड़ी बातों के सिवा और क्या था। घर का किराया पाँच रुपया था, रमानाथ ने पंद्रह बतलाए थे। लड़कों की शिक्षा का खर्च मुश्किल से दस रुपए था, रमानाथ ने चालीस बतलाए थे। उस समय उसे इसकी जरा भी शंका न थी कि एक दिन सारा भंडा फूट जाएगा। मिथ्या दूरदर्शी नहीं होता, लेकिन वह दिन इतनी जल्दी आएगा, यह कौन जानता था। अगर उसने ये डींगें न मारी होती तो रामेश्वरी की तरह वह भी सारा भार दयानाथ पर छोड़कर निशचिंत हो जाता, लेकिन इस वक्त वह अपने ही बनाए हुए जाल में फंस गया था। कैसे निकले! उसने कितने ही उपाय सोचे, लेकिन कोई ऐसा न था, जो आगे चलकर उसे उलझनों में न डाल देता, दलदल में न फँसा देता। एकाएक उसे एक चाल सूझी। उसका दिल उछल पड़ा, पर इस बात को वह मुँह तक न ला सका, ओह!

कितनी नीचता है! कितना कपट! कितनी निर्दयता! अपनी प्रेयसी के साथ ऐसी धूर्तता! उसके मन ने उसे धिक्कारा। अगर इस वक्त उसे कोई एक हजार रुपया दे देता तो वह उसका उम्र भर के लिए गुलाम हो जाता।

दयानाथ ने पूछा-कोई बात सूझी?

'मुझे तो कुछ नहीं सूझता।'

'कोई उपाय सोचना ही पड़ेगा।'

'आप ही सोचिए, मुझे तो कुछ नहीं सूझता।'

'क्यों नहीं उससे दो-तीन गहने माँग लेते? तुम चाहो तो ले सकते हो, हमारे लिए मुश्किल है।'

'मुझे शर्म आती है।'

'तुम विचित्र आदमी हो, न खुद माँगोगे, न मुझे माँगने दोगे, तो आखिर यह नाव कैसे चलेगी?'

'मैं एक बार नहीं, हजार बार कह चुका कि मुझसे कोई आशा मत रखो। मैं अपने आखिरी दिन जेल में नहीं काट सकता।'

'इसमें शर्म की क्या बात है, मेरी समझ में नहीं आता। किसके जीवन में ऐसे कुअवसर नहीं आते? तुम्हीं अपनी माँ से पूछो।'

रामेश्वरी ने अनुमोदन किया-मुझसे तो नहीं देखा जाता था कि अपना आदमी चिंता में पड़ा रहे, मैं गहने पहने बैठी रहूँ। नहीं तो आज मेरे पास भी गहने न होते? एक-एक करके सब निकल गए। विवाह में पाँच हजार से कम का