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यह कहकर उसने समाचार-पत्र रख दिया और एक लंबी साँस लेकर बोली-इन बेचारों के बाल-बच्चों का न जाने क्या हाल होगा!

देवीदीन ने तत्परता से कहा-तुमने जिस दिन मुझसे कहा था, उसी दिन से मैं इन बातों का पता लगा रहा हूँ। आठ आदमियों का तो अभी तक ब्याह ही नहीं हुआ और उनके घर वाले मजे में हैं। किसी बात की तकलीफ नहीं है। पाँच आदमियों का विवाह तो हो गया है, पर घर के खुश हैं। किसी के घर रोजगार होता है, कोई जमींदार है, किसी के बाप-चचा नौकर हैं। मैंने कई आदमियों से पूछा, यहाँ कुछ चंदा भी किया गया है। अगर उनके घर वाले लेना चाहें तो दिया जाएगा। खाली दिनेस तबाह है। दो छोटे-छोटे बच्चे हैं, बुढिया माँ और औरत, यहाँ किसी स्कूल में मास्टर था। एक मकान किराए पर लेकर रहता था। उसकी खराबी है।

जालपा ने पूछा-उसके घर का पता लगा सकते हो?

'हाँ, उसका पता कौन मुसकिल है?'

जालपा ने याचना-भाव से कहा-तो कब चलोगे? मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। अभी तो वक्त है। चलो, जरा देखें।

देवीदीन ने आपत्ति करके कहा—पहले मैं देख तो आऊँ। इस तरह मेरे साथ कहाँ-कहाँ दौड़ती फिरोगी?

जालपा ने मन को दबाकर लाचारी से सिर झुका लिया और कुछ न बोली। देवीदीन चला गया।

जालपा फिर समाचार-पत्र देखने लगी, पर उसका ध्यान दिनेश की ओर लगा हुआ था। बेचारा फाँसी पा जाएगा। जिस वक्त उसने फाँसी का हक्म सुना होगा, उसकी क्या दशा हुई होगी! उसकी बूढी माँ और स्त्री यह खबर सुनकर छाती पीटने लगी होंगी। बेचारा स्कूल मास्टर ही तो था, मुश्किल से रोटियाँ चलती होंगी और क्या सहारा होगा? उनकी विपत्ति की कल्पना करके उसे रमा के प्रति ऐसी उत्तेजनापूर्ण घृणा हुई कि वह उदासीन न रह सकी। उसके मन में ऐसा उद्वेग उठा कि इस वक्त वह आ जाएँ तो ऐसा धिक्कारूँ कि वह भी याद करें। तुम मनुष्य हो! कभी नहीं। तुम मनुष्य के रूप में राक्षस हो, राक्षस! तुम इतने नीच हो कि उसको प्रकट करने के लिए कोई शब्द नहीं है। तुम इतने नीच हो कि आज कमीने से कमीना आदमी भी तुम्हारे ऊपर थूक रहा है। तुम्हें किसी ने पहले ही क्यों न मार डाला! इन आदमियों की जान तो जाती ही, पर तुम्हारे मुँह पर तो कालिख न लगती। तुम्हारा इतना पतन हुआ कैसे! जिसका पिता इतना सच्चा, इतना ईमानदार हो, वह इतना लोभी, इतना कायर!

शाम हो गई, पर देवीदीन न आया। जालपा बार-बार खिड़की पर खड़ी हो-होकर इधर-उधर देखती थी, पर देवीदीन का पता न था। धीरे-धीरे आठ बज गए और देवी न लौटा। सहसा एक मोटर द्वार पर आकर रुकी और रमा ने उतरकर जग्गो से पूछा-सब कुशल-मंगल है न दादी! दादा कहाँ गए हैं?

जग्गो ने एक बार उसकी ओर देखा और मुँह फेर लिया। केवल इतना बोली-कहीं गए होंगे, मैं नहीं जानती।

रमा ने सोने की चार चूड़ियाँ जेब से निकालकर जग्गो के पैरों पर रख दी और बोला—यह तुम्हारे लिए लाया हूँ दादी, पहनो, ढीली तो नहीं हैं?

जग्गो ने चूड़ियाँ उठाकर जमीन पर पटक दी और आँखें निकालकर बोली-जहाँ इतना पाप समा सकता है, वहाँ चार चूडियों की जगह नहीं है! भगवान् की दया से बहुत चूड़ियाँ पहन चुकी और अब भी सेर-दो सेर सोना पड़ा होगा, लेकिन जो खाया, पहना, अपनी मिहनत की कमाई से, किसी का गला नहीं दबाया, पाप की गठरी सिर पर