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रमेश बाबू ने चिंतित होकर कहा-यह तो आपने बुरी खबर सुनाई, मगर आपकी छुट्टी नामंजूर हुई तो क्या होगा?

मुंशीजी ने माथा ठोंककर कहा-होगा क्या, घर बैठा रहूँगा। साहब पूछेंगे तो साफ कह दूँगा, मैं सर्जन के पास गया था, उसने छुट्टी नहीं दी। आखिर इन्हें क्यों सरकार ने नौकर रखा है। महज कुरसी की शोभा बढ़ाने के लिए? मुझे डिसमिस हो जाना मंजूर है, पर सर्टिफिकेट न दूंगा। लौंडे गायब हैं। आपके लिए पान तक लाने वाला कोई नहीं। क्या करूँ?

रमेश ने मुसकराकर कहा मेरे लिए आप तरदुद न करें। मैं आज पान खाने नहीं, भरपेट मिठाई खाने आया हूँ। (जालपा को पुकारकर) बहूजी, तुम्हारे लिए खुशखबरी लाया हूँ। मिठाई मँगवा लो।

जालपा ने पान की तश्तरी उनके सामने रखकर कहा—पहले वह खबर सुनाइए। शायद आप जिस खबर को नई-नई समझ रहे हों, वह पुरानी हो गई हो।

रमेश-जी कहीं हो न! रमानाथ का पता चल गया। कलकत्ता में है।

जालपा—मुझे पहले ही मालूम हो चुका है।

मुंशीजी झपटकर उठ बैठे। उनका ज्वर मानो भागकर उत्सुकता की आड़ में जा छिपा, रमेश का हाथ पकड़कर बोले—मालूम हो गया कलकत्ता में है? कोई खत आया था?

रमेश–खत नहीं था, एक पुलिस इंक्वायरी थी। मैंने कह दिया, उन पर किसी तरह का इलजाम नहीं है। तुम्हें कैसे मालूम हुआ, बहूजी?

जालपा ने अपनी स्कीम बयान की। 'प्रजा-मित्र' कार्यालय का पत्र भी दिखाया। पत्र के साथ रुपयों की एक रसीद थी, जिस पर रमा का हस्ताक्षर था।

रमेश—दस्तखत तो रमा बाबू का है, बिल्कुल साफ, धोखा हो ही नहीं सकता। मान गया बहूजी तुम्हें! वाह, क्या हिकमत निकाली है! हम सबके कान काट लिए। किसी को न सूझी। अब जो सोचते हैं, तो मालूम होता है, कितनी आसान बात थी। किसी को जाना चाहिए, जो बच्चा को पकड़कर घसीट लाए। यह बातचीत हो रही थी कि रतन आ पहुँची। जालपा उसे देखते ही वहाँ से निकली और उसके गले से लिपटकर बोली-बहन कलकत्ता से पत्र आ गया। वहीं हैं।

रतन–मेरे सिर की कसम?

जालपा हाँ, सच कहती हूँ। खत देखो न!

रतन तो आज ही चली जाओ।

जालपा—यही तो मैं भी सोच रही हूँ। तुम चलोगी?

रतन–चलने को तो मैं तैयार हूँ, लेकिन अकेला घर किस पर मुझे मणिभूषण पर कुछ शुबहा होने लगा है। उसकी नीयत अच्छी नहीं मालूम होती। बैंक में बीस हजार रुपए से कम न थे। सब न जाने कहाँ उड़ा दिए? कहता है, क्रिया-करम में खर्च हो गए। हिसाब माँगती हूँ, तो आँखें दिखाता है। दफतर की कुंजी अपने पास रखे हुए है। माँगती हूँ, तो टाल जाता है। मेरे साथ कोई कानूनी चाल चल रहा है। डरती हूँ, मैं उधर जाऊँ, इधर वह