पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/९७

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ३३ )
सात खून।


ऐसे जोर से घड़कने और फटने लगा कि उसका हाल मैं किसी तरह भी अब नहीं कह सकती। हाय, मैं ऐसी अभागी हूँ कि मेरे पिता और माता के कुल में अब सिवा मेरे, और कोई न रहा!!! एक दूर के नाते के चमा हैं, पर ये इस समय कहां हैं और उन्हें मेरी इस घोर विपत्ति की कोई खबर है, कि नहीं। इसे मैं नहीं जान सकती । (१) इसी बात के सोनते-सोचते मुझे अपने मामा की बात याद आगई और उसके स्मरण होते ही मेरा सिर चकरा गया ! सुनिए, मेरे नानिहाल में एक मामा भर थे, पर दो साल हुए कि वे भी इस संसार से विदा होए हैं ! मेरा नानिहाल कानपुर जिले के विक्रमपुर गांव में था, पर मेरे नाना-नानी मेरे जन्म लेने के पहिले ही सुरपुर सिधार चुके थे। एक मामा भर थे, सो वे भी तीन तीन स्त्रियों के मर जाने पर गांव और घर-गृहस्थी से उदास होकर मेरे यहां आकर कुछ दिनों तक रहे थे । इसके बाद उन्होंने सरकारी फौज में नौकरी करली थी और कभी कभी, साल में एक-आध बार, दो चार दिन के लिये वे मेरे वहां आजाया करते थे। वे जब मेरे यहां आते थे, सब अपनी तलवार और बन्दूक भी साथ लाते थे। बस, उसी समय में मैंने अपने मामा से तल्वार और सन्दूक चलाना सीखा था । यदि मुझे बन्दूक चलानी न पाती तो मैं उस समय दियानतहुसेन आदि छमों कांस्टेबिलों को बन्दूक दिखला कर करवाती ही कैसे ? यहां पर इतने और भी सुन लीजिए कि यदि उस रात को मझे कोई कांस्टेबिल छेड़ता, तो,-या तो मैं उसे ही गोली मार देती, या आपही अपने कलेजे में गोली मार कर मर जाती। क्योंकि मैं ऐसा


(१) पाठक महाशयों को समझना चाहिए कि दुलारी की भेंट भाई निहालसिंह से जेल में हुई थी । इसलिये अपने चचा के विषय में दुलारी ने जो ऐसा सोचा था, वह कोतवाली की बात है।