जल पीकर भी रह सकती है। का तुम बाह्मण होफर यह बात अपने जी से नहीं समझ सकते कि, 'यह स्थान मेरे खाने-पीने के लायक है?"
इस पर वह बेचारा कुछ कहना ही चाहता था कि इतने ही में उन दरोगाजी के साथ खुद कोतवाल साहप मागए और उन्होंने बड़े क्रोध के साथ मुझसे यों कहा,-" दुलारी, अगर तुम्हें रसोई खाना हो, तो फौरन दरोगाजी के साथ चौके में जा कर रसोई खा आओ; और जो न खाना हो तो भूखी रहो । यहां कोई 'बह्मभोज' या 'एकादशी' का सदावर्त्त नहीं है कि तुम्हें दूध या फलाहार दिया जायगा।"
इस पर मैन भी कुछ कुरुख होकर यों कहा,-"जी, अच्छा, मुझे कुछ न साहिए, क्योंकि मैं सन्तोष के साथ केवल जल पी फर ही अपना पेट भर लंगी । कणों,साहप ! खाली जल तो मिलेगा न?" इम पर कोतवालसाहय ने यों कहा,-"नहीं, अगर तुम रसोई न नागोगी, तो खाली पेट भरने के लिये पानी भी नहीं दिया जायगा ।"
मैने भी इसका मुहंतोड़ यो जवाब दिया,-"तो अच्छी बात है, मैं निर्जल व्रत भी कर सकती हूं । सुनिए फोतवाल साहब ! आप मुसलमान हैं; इसलिये हिन्दुओं के व्रतोपवास की बात गोप क्या, समझेगे ? सुनिए और याद रखिए फि हिन्दुओं-पिशेषकर ब्राह्मणों के घर की स्त्रियां चालीस-चालीस उपचास तफ कर सकती हैं और उन उपवास के दिनों में वे जल की एक बंद भी नहीं छूती । .
"तो धस, तुम भी निर्जल व्रत करो।" यों कहकर कोतवाल साहय दरोगोजी के साथ बड़बड़ाते हुए चले गए और उनके चले जाने के कुछ देर बाद धीरे धीरे शिवरामतिवारी ने मुझसे यो कहा,-"शाबाश, दुलारी ! राज तुमने ब्राह्मण-फुल फी खूप ही