मैंने उससे यह पूछा,--"अच्छा, जो कुछ भगवान ने मेरे भाग्य में लिखा होगा, वही होगा। क्योंकि भाग्य के लिखे को कोई भी नहीं मीट सकता; पर तुम यह तो पताओ कि इन कोतवाल साहय की चालचलन कैसी है ?"
यह सुनकर उसने कहा,--"ओह, दुलारी! मैं तुम्हारी इस बात का मतलब भलीभांति समझ गया ! सुनो, तुम किसी दुसरी बात का डर जरा भी न करो । क्योंकि ये कोतवाल साहब असामी पर तो जरा भी रहम या रियायत नहीं करते, पर चालचलन के ये बड़े अच्छे हैं । अरे, तुम्हारे बराबर की तो इन्हें दो-तीन लड़कियां हैं। इसलिये अपनी इजत-आबरू के पास्ते अरण तुम जरा भी खौफ़ न खाओ, क्योंकि यहां पर उस तरह के दहशत की कोई बात नहीं है। "
वह इतना ही कहने पाया था कि इतने ही में नौ बजा और मेरे पहरे पर दूसरे कांस्टेबिल के आजाने से वह राजपूत कांस्टेबिसत चला गया। हां, जातीबेर इसने अपने जोड़ीदार से इतना जरूर कह दिया था फि,-"देखमा, शिवराम तिवारी! इस औरत से किसी फिल्म की बदसलूकी न कर बैठना ।
यह सुन कर शिवराम तिवारी मे उस कांस्टेबिल का नाम लेकर यो जवाब दिया था कि,-"नहीं, रघुनाथसिंह ! इस पास का तुम जरा भी आन्देशा न करो। अरे, सोचो तो सही कि इस औरत के बराबर उंम्र की तो हमारी और तुम्हारी बेटियां हैं ! तब गला, फिर इस आफत की मारी औरत से हमलोग कैसे छेड़छाड़ कर सकते हैं ! इस पर एक बात और भी है, और यह यह है कि आज कोतवाल साहब ने अभी यहां पर के सब कांस्टेबिलों के नाम यह हुकुम जारी किया है कि,-"कोई भी कांस्टेबिल इस औरत के साथ किसी किस्म की भी छेड़खानी न करे।" जाओ,- वफ़तर में जाने पर तुमको भी इस हुक्म का हाल-मालूम होजायगा।