अनजानते में वैसा काम मुझसे हो ही गया, तो उसका दंड मुझे क्यों दिया जायगा ? मैं यह नहीं मानती कि आपके आईन-कानून में क्या लिखा है, पर खून घर में ही शान में कभी भी कबूल नहीं कर सकती, क्योंकि खून करने की इच्छा से मैने हिरवा का गला नहीं दबाया था। खैर, जो कुछ हो, या आपलोग मेरी बातों का आहे जैसा अर्थ लगावें, पर धर्मन: मैं निष्पाप हूं और एक हिरवा को छोड़ कर योको के छओं आदमियों के शोर में तो मैने उंगली भी नहीं लगाई है। आपका कानून मुझे चाहे जैसा दण्ड दे, पर इस बात का मुझे पूरा पूरा भरोसा है कि परमात्मा मुझे अवश्य निष्पाप जान कर अपनी गोद में स्थान देगा।"
मैं इतनी बातें ऐसी तेजी और इतने क्रोध के साथ कह गई कि उसे देख-सुन-कर साह बहादुर और कोतवाल साहब एक दूसरे की ओर देख और आपस में कुछ अङ्गेजी में बात चीत करके हंस पड़े ! फिर साहब बहादुर में मेरी भोर देख कर यों कहा,-"डेग्नो डुबारी ! यह खून का मामला है । इसमें हम कुछ नेई करने शकटा। टुमको मजिष्ट्रट साह का शामने जरूर जाना होगा। फिर यहाँ पर टुम अपना जो कुछ कहना हो, शो बाट कहना । मगर टुमारा टकडीर में अच्छा होगा, रो टुग छूट भी शकता है। इस बाशटे इस बकट टुम को थामे पर जाकर हाजट में आलथट रहना होगा।"
मैं बोली,--"अच्छा, साहब ! मुझे जो कुछ कहना था, उसे मैं कह चुकी । अब आपके जो जी में भावे, सो आप कीजिए। मैं भी अब इस बात को देखूंगी संसार में "धर्म" और "सत्य" नाम के गी कोई पदार्थ हैं, या अब इस जागत में सोलहों आगे कलिकाल का हो दौरदौरा होरहा है !!!"
मेरी इन बातों का जवाब कुछ भी नहीं मिला !!!
बस, फिर मैं तो एक बैलगाड़ी पर चार कांस्टेबिलों के पहरे