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सात खून।


हुए था कि उसके पैर ठीक तौर से धर्ती में नहीं पड़ते थे और उसके मुहं से ऐसी दुर्गन्धि निकल रही थी कि जिससे मेरा सिर चक्कर खाने लग गया था। यहां तक कि उसके मुहं से साफसाफ बात भी नहीं निकलती थी। यह सब था, पर फिर भी मैने उसे इसीलिये यह पकमा दिया था कि, 'जिसमें वह अबदुल्ला को खूप शराब पिलाकर बेहोश करदे; क्योंकि यदि अबदुल्ला नशे में गाफिल होजाय तो फिर हींगन ऐसे जानवरों को अंगूठा दिखाते मुझे तनिक भी देर न लगेगी।'

हींगन के साथ मेरी इतनी हो सात होने पाई थी कि इतने ही में हाथ में एक लालटेन लिये हुए झूमता झामता अबदुल्ला भी यहीं पर मा पहुंचा और त्योरी बदलकर उसने दींगन से यों कहा,-

"क्यो बे, छल्लू के पट्टे ! तूने इतनी देर क्यों लगाई ?"

यह सुनकर हींगन कुछ बिगड़ा नहीं, परन बड़ी भाजिजी के साथ उसने अबदुल्ला से यों कहा,-" अजी, हज़रत ! यह नई औरत आपके पास चलने में जरा हिचकती और शरमोती थी, इसलिये मैं इसे खूब समझा-बुझा रहा था। वस, अब यह राजी होगई है। इसे लेकर मैं आगे ही वाला था कि आप खुद भा पहुंचे। बलिए, इसे मैं लिवाए चलता हूं।"

हींगन की ऐसी बातें सुनकर अबदुल्ला ने हंसकर उससे कहा,- " वाकई, मियां हींगन ! तुम बड़े होशियार शौर काबिल एसबार शख्स हो । मैं सदर में तुम्हारे लिये सिफारिश करूंगा और तुम्हें चौकीदार से जमादार बनवा दूंगा । मगर खैर, अब तुम इस माहे-लका को उस कोठरी में फौरन ले आमा।"

यों कहकर अबदुल्ला डग मारता हुआ वहांसे चला गया । उसके रंग ढंग से यह मैने जान लिया था कि यह शराब के नशे में भरपूर चूर हो रहा है !

अस्तु, उसके जाने पर हींगन ने मुझसे कहा,--लो, अब चलो