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सात खून।


सब कुछ सुन लेने पर मैने उन दोनों की ओर देखकर यों कहा,--"तो, क्यों भाइयों! इस गांव के लोग ऐसे बदमाश थानेदार की रिपोर्ट सरकार में क्यों नहीं करते।"

इसपर उन दोनों ने पारी पारी से यों कहा,--"दुलारी! भला, बेचारे गांव के गरीब आदमियों में इतमी हिम्मत कहां है।"

बस, इतनी बातचीत होने के बाद रामदयाल मित्र एक लोटा भर कर दूध ले आए और मुझसे बोले,--" यह चंडाल थानेदार तुम्हें खान-पाने के लिये कुछ भी न देगी । इसलिए यह गाय का दूध में लाया हूं, इले तुम पी लो।"

यह सुन कर मैंने बहुत कुछ नाही-नुकर किया पर उन्होंने इतना आग्रह किया कि फिर मैं जादे हठ न कर सकी और उस लोटे में भरे हुए सारे दूध को गटर-गटर पी गई। मैने उस कोठरी के जंगले के पास आकर अपने मुंह से अंजुली लगाई और बाहर से एक पत्ते में धार बांध कर रामदयाल ने मुझे दूध पिलाना प्रारम्भ किया । यो जब मैं सब दूध पी गई, तब उन्होंने कुएं का ताजा पानी लाकर मेरा हाथ-मुहं धुला दिया। फिर वे दोनो घूम धूम कर मेरी कोठरी की चौकसी करने लगे और मैं अपने पिता की शोचनीय मत्यु और उनका योंहीं बहा दिया जाना स्मरण करके फूट फूट कर रोने लगी।

मुझे ये ( दियानतहुसेन और रामदयाल ) दोनों बार बार समझाते थे, पर जय नदी का बांध टूट जाता है, तब क्या उसकी धारा का बेग रुक सकता है ?

खैर, इसी तरह मैं घंटों तक रोया की, फिर आप ही आप धर्ती में लुड़क गई और नींद ने मुझे अपनी गोद में सुला लिया। यहां पर इतना और भी समझ लेना चाहिए कि मैं जिस कोठरी में बन्द की गई थी, उसकी धर्ती में पुआल बिछ रहा था, इस लिए मुझे कोई कष्ट न हुआ और मैं देर तक बेख़बर पड़ी पड़ी सोया की।