इसे चुपचाप भना दे सकसे थे; पर जब कि यह नौजवान लड़की खुद यहां आकर फंस गई है, तच भला इसे हमलोग कैसे छोड़ सकते हैं। भाई, अपनी अपनी जान सभी को प्यारी होती है,इसलिये इसे हमलोग कैसे यहांसे भगा दें।"
चौकीदार दियानतहुसेन की बात सुनकर रामदयाल मे कहा,-"हां,भाई ! ये सच बातें तो तुम ठीक कह रहे हो ।”
बाद इसके, मेरी तरफ़ घूमकर उन्होंने मुझसे यों कहा,--" बहिन दुलारी, अब तुम केवल भगवती का ध्यान करो, क्योंकि उसके अलावे,'अबदुल्ला थानेदार से तुमको कोई भी नहीं बचा सकता।"
यह सुनकर मैने यों कहा,--"सुनो भाइयों, मैं यहांसे भागना नहीं चोहती और न यही चाहती हूं कि तुमलोग मुझे यहांसे भगा कर खुद आफत में फंसी । अजी,जो मुझे भागना ही होता, तो मैं आप ही आप यहां आती ही क्यों ? सो मैं, भागना नहीं चाहती और में फांसी से ही डरती हूँ। परन्तु हां, मैं अपने धर्म के लिये अवश्य घबरा रही हूँ कि कहीं मेरा वही अमूल्य धन (सतीत्व) न जाता रहे । इम्य, जिम सतीत्व की रक्षा के लिये मैं यहां आई, 'यही सतीत्व थानेदार अब्दुल्ला के हाथों गंवाना पड़ेगा ! अच्छा, आपलोग मेरे लिये कोई चिन्ता न करें, क्योंकि अब मैने यह बात भली भांति समझ लो कि भगवती की जो इच्छा होगी, यही होगा।
यो कहकर मैं फूट-फूट कर रोने लगी और रामदयाल तथा दियामतहुसेन मुझे ढाढ़स देगे लगे। घंटे ढेढ़ घटे के पीछे मैं कुछ शान्त हुई और रामदयाल और दियानसहुसेन के साथ थानेदार अबदुल्ला की चाल-चलन के विषय में बातचीत करने लगी। उन दोनों ने उसके अत्याचार की बहुतेरी कहांनियां मुझे सुनाईं, जिन्हें मैने खूब मन लगाकर सुना।