के चेहरे की तरफ टकटकी लगाकर देखगे लगी । उन चारों आदमियों को मैं चीन्हती थी, क्योंकि वे सब मेरे गांव के ही रहने वाले थे। उनमें से एक, जिसके हाथ में पलता हुआ पलीता था, वह नब्बू जुलाहा था, दूसरी धाना कोइरी था, तीसरा परसा कहार था और चौथा कालू कुरमी था। यह कालू मेरे पिता के उन्हीं चारों हरवाहों में से एक था, जिसने मेरे पिता का बहुत दिनों तक नमक खाया था।
सो, यह सन अनूठा तमाशा देखकर मैं घबरा गई और मन ही मन यह सोचने लगी कि, 'अब क्या करना चाहिए !'
बस, यहां तक मैं कह चुकी थी कि उन अंगरेज अफसर ने मेरा नाम लेकर मुझसे यों कहा,--" डुलारी, टुम जरा ठहर जाओ, क्योंकि डो बजा बाहटे हैं, इस वाशटे हम जरा नाशदा फरमे मामटा।
यह सुनकर मैने ऊपर नजर उठाकर देखा, तो क्या देखा कि साहब अपनी कुर्सी पर से उठकर एक खानसामा के साथ खाना खाने जा रहे हैं । उनके जाते ही भाईजी भी उठे और यों कहकर एक ओर चले गए कि, “मैं भी जरा जलपान कर आऊं।"
यों कहकर भाईजी भी चले गए और वहां पर मेरे पास खाली बारिस्टर साहब रह गए । उन्होंने मेरी मोर जरा सा मुस्कुराकर देखा और यों कहा,-" बीबी दुलारी, मैं तुम्हें इस बात का विश्वास दिलाता हूं कि तुम जरूर छूट जाओगी।"
यह सुनकर मैंने अपनी आंखें नीची कर ली और मन ही मन प्रसन्न हो तथा मोठों के अन्दर ही अन्दर हंसफर यों कहा,- " मुझ मागी को छुड़ाकर आप क्या कीजिएगा ?"
उन्होंने कहा,--" यह पीछे सोचा जायगा । पहिले तुम इस बला से छुटकारा तो पा लो।"
इस पर मैंने कुछ न कहा, बल्कि फिर मारे जा के उनकी