जिन्हें कुछ भी समाई थी, इधर उधर भागे जा रहे थे। एक तो यह हजार आठसौ आदमियों को यस्ती का छोटा सा गांव था ही, बस पर जब लोग घर-द्वार छोड छोड़ कर भागमे लगे, तब तो गौर भी उस गांध की श्री नष्ट होगई और जिधर देखो, उधर ही भयङ्करता राक्षसी मुहं पाए घूमती हुई दिखाई देने लगी। हाय, यह सब देख सुन कर मेग हिया और भी फटगे लमा, पर मैं लाचार थी और कुछ भी कर-धर नहीं सकती थी। मेरे घर के पास एक मक (नाई ) रहता था, जिसका नाम हिरवा था; उसे मैंने चार रुपए देकर यह फहा फि, कानपुर से कोई अच्छे वैद्य को बुला लाये,' पर वह चण्डाल जी ये रुपए लेकर गया, सो उस दिन लौट फर भाया, जिस दिन उसकी मौत लिखी थी।
अस्तु इसी तरह तीन दिन पीछे रात को मेरे प्यारे पिता भी कूच कर गए और मुझ निगोड़ी को एक दम से अनाथ फर गए । हाय, हाय ! भला अब उस शोक-उस अपार शोफ फा हाल मैं क्यों कर किसी के आगे प्रगट करू ! बस, यहां पर इतना ही समझ लेना चाहिए कि गांव के बचे-खुचे लोगों में है तो म समय कोई भी न आया, पर हां, मेरे यहां जो चार हरवाहे नौ कार थे, वे ही मेरे पिता को गंगाजी उठा ले गए । यह देखकर मैं भी उनके पीछे पीछे दौड़ी, पर जब मैं गंगा तट के पास पहुंची तो मैगे क्या देखा कि वे चारों परवाहे लौट रहे हैं ! यह देखकर मैने उन हत्यारों से यह पूछा कि, ' तुम सभी में मेरे पिता फो कहां रक्सा है ? ' इस पर उन दुष्टों ने यह जवाब दिया फि, 'बस, अब उठो और चुपचाप घर लौट चलो। क्योंकि इस हाड़-तोड़ जाड़े की रात को गंगा नहाकर अपना प्राण न गंवागी । हमलोगों ने तुम्हारे पिता को गंगा में बहा दिया है और साथ घर लौटे जा रहे हैं । फल सबेरे जब खूग फरारी धूप निकलेगी, तय गंगा में गोता “लगा लेंगे।'