वे तमग कर चले गए थे। इस बात को आज आठ बरस हुए होंगे। बस, फिर तबसे न तो मैंने उन्हें कभी देखा और न उनका कोई जिक्र ही अपने पिता के मुहं से सुना । अस्तु, तो इस समय आपने उनका जिकर क्यों किया ? "
पेशाले,--"सुनो, कहता हूं। मैं तुम्हारे गांव पर अभी कई दिन हुए, गया था और तुम्हारे चचा रघुनाथप्रसाद तिवारी से भी मिला था। उनकी जबानी, तथा उस गांव के और लोगों की जबानी भी मुझे यह बात मालूम हुई कि, 'तुम्हारे पिता के मरने की खबर पाकर वे तुम्हारे घर आए।' पर घर जाने पर जब उन्हें यह मालूम हुआ कि, ' तुम्हारे पिता गङ्गा में बहा दिए गए हैं औऱ तुम खून के झमेले में फंस गई हो; तब उन्होंने तुम्हारी आशा तो छोड़दी और तुम्हारे पिता का पुत्तल-विधान कर के उनका विधिपूर्वक श्राद्ध किया। फिर श्राद्ध के निपटने पर एक दो बार वे तुम्हारी टोह लेंगे कानपुर भी आए थे, पर जब उन्होंने यह देखा फि खून के जुर्म में तुम पूरे तौर से जकड़ गई हो, तो फिर वे तुम्हारे गांव पर चले गए और तुम्हारे पिता के घर-द्वार और खेत पर अदालती कारवाई करके उन्होंने अपना कबजा कर लिया । अब वे अपने गांव को छोड़कर तुम्हारे पिता के घर में अपनी गृहस्था के साथ आ बसे हैं और खेती-धारी करने लगे हैं। तुम्हारे पिता के साथा आठ बरस पहिले जो तुम्हारे चचा का झगड़ा हुआ था, उसकी बात भी वे मुझसे कहते थे । यह बात यही है कि वे अपने साले के लड़के के साथ तुम्हारा ब्याह कर देगे के लिये बड़ा आग्रह कर रहे थे, पर तुम्हारे पिता ने उनकी वह बात नहीं मानी थी । बस, उस लड़ाई-झगड़े की जड़ यही थी। हां, तुम्हारे मुकदमे में जो उन्होंगे कुछ भी पैरवी नहीं को, इस बार के लिये जब मैंने उन्हें बहुत फटकारा, तब उन्होंने अपनी गरीबी का हाल कहकर रोना प्रारम्भ किया। फिर वे मेरे