वहांसे मैं इस जेल में भेजी गई और अभी तक यहीं पड़ी हुई हूं। यहां भी, जिस दिन से मैं आई हूं, बराबर दूध ही पी रही हूं और सिवाय दूध या पानी के, अपने घर से चलने के बाद से लेकर आज तक कोई भी तीसरी चीज मैने अपने मुंह में नहीं डाली है। तो फिर यह सब जान बूझ कर भी आपको आज क्या होगया, जो आपने मेरे खाने के लिये इतनी तैयारी की ? आप तो यह बात जानते ही हैं कि जेल के अन्दर आने पर जेल की रसोई खाने के लिये मुझसे बहुत कुछ गया, पर जय तीन तीन, चार चार दिन तक केवल जल ही पीकर मैं रह गई, तब भूख मार कर आपलोगों को मेरे लिये दूध की व्यवस्था करनी पड़ी। फिर यह सब जान बूझकर भी मेरे चिढ़ाने के लिये आज इतनी तैयारियां आपने क्यों की ? क्या आपको यह विश्वास है कि जेल के अन्दर रहकर मैं इन सब सुख की चीजों को कभी छूऊंगी भी ? हां, यह आपको अधिकार है कि मुझे चाहे जिस कोठरी में रक्खें, पर जेल के अन्दर मैं जब तक रहूंगी, तब तक उसी ढंग से रहूंगी, जिस ढंग से कि अब तक रही हूं। अर्थात् मुझे खाने के लिये कुछ न चाहिए। हां, पीने के लिये दूध और पानी जरूर चाहिए । दूध मैं उसी तरह मिट्टी के पुरवे (वर्तन) में पीऊंगी, जिस तरह कि अब तक पीती आ रही हूं। मुझे पहिले की भांति नित्य कच्चा दूध मिलना चाहिए और मेरे दूध में कभी भी मीठा न डालना चाहिए । पानी की एक लोहे की बालटी और एक टीन का गिलास मेरी कोठरी में जरूर रहना चाहिए,जैसा कि अब तक रहता गाया है । इसलिये आप अपने ये सुराही, गिलास, पूरी, मिठाई और फलों को यहां से लेजाइए, और मेरे सोने के लिये जो चार पाई लाई गई है, उसे भी यहाँसे हटाइए ।मुझे बैठने के लिये चौकी की भी आवश्यकता नहीं है और बढ़ियां कंबल भी मुझे न चाहिए । बस, केवल दो मामूली कंबल बहुत हैं, जिनमें से एक को मैं धर्ती में बिछा लूंगी
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खूनी औरत का