पृष्ठ:खूनी औरत का सात ख़ून.djvu/१८१

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सात खून।



एक बजे के पहिले ही हम सब प्रयागराज पहुंचीं। मैंने सुकुमारी से यह बात पहिले ही कह दी थी कि, 'मैं प्रयाग पहुंचते ही पहिले त्रिवणी में स्नान करूंगी।' बस, मेरी बात उसने पुन्नी के जारिए बारिस्टर साहब से कहला दी। सो, स्टेशन से बाहर होतेही हम सब फिर मोटर पर सवार होकर बांध पर पहुंची और वहां से किले के नीच आ और नाव पर सवार होकर त्रिवेणी संगम पर गई। वहां सभों ने स्नान किया और लौट कर जब सब कोई मोटर पर सवार हुए तो बारिस्टर साहब ने पुन्नी से यों कहलाया कि "सारा दिन बीत चला, अब कुछ जल—पान करके तब डेरे पर चला जाय।"

सचमुच, अब तक सबके सब बेचारे भूखे प्यासे थे, पर मैं क्या कर सकती थी। क्यों कि उस दिन मैंने निर्जल व्रत करने का निश्चय कर लिया था। यही बात मैंने सुकुमारी बीबी को समझा दी और उन्होंने वही बात बारिस्टर साहब से कहलादी। इस पर मुझसे बहुत कुछ कहा गया, पर जब मैंने अपना निश्चय न तोड़ा तो मुझे और पुन्नी-मुन्नी को छोड़कर और सभी ने कुछ फल—वल खाए और तब मोटरें रवाने हुई।

वहां से चलकर मैं सुकुमारी बीवी के साथ भाई निहालसिंह की कोठरी में उतरी, पुन्नी-मुन्नी भी मेरे साथ थीं। और बारिस्टर साहब अपने दोस्त से हाथ मिला और एक नज़र मुझ पर डाल कर चले गए। अब मुझे, जब तक ब्याह न हो, सुकुमारी बीबी के ही पास रहना होगा।