साहब से यों कहने लगी,---"हां, कई दिनों से, अर्थात उस दिन से जिस दिन कि मुझे फांसी की आज्ञा हुई थी, मैं नहाई नहीं हूँ इसलिये मैं नहाना तो अवश्य चाहती हूं, पर मुझे अपनी टहल-चाकरी के लिये किसी हलनी की आवश्यकता नहीं है। साथखूनी इसके, मैं वह नई धोती भो अभी नहीं पहिरना चाहती, जिसे कि आपने भी इस कहांरी को दिया है । इसलिये इस धोती को आप वापस लेलें । हां, नहाने के लिये मुझे अवश्य हुकुम देदें।"
यह सुनकर जेलरसाहब ने मेरे साथ बड़ी हुज्जत की, पर जब नई धोती पहिरने के लिये मैं जरा भी राजी न हुई, तो उस धोतीर को उन्होंने उस कहांरी से ले लिया और मुझे उन दोनों के साथ नहाने के लिये विदा किया । यद्यपि मैं उन कहांरियों को भी अपने साथ नहीं लिया चाहती थी, पर मेरी यह बात नहीं मानी गई और मैं उन दोनों के साथ एक और चली । साथ साथ, पर जरा दूर दूर, बन्दूक लिए हुए दो कांस्टेबिल भी मेरे पीछे पीछे चले।'
मुझे वे दोनों कहांरिने एक कुएं पर लेगई, जिसके बगल में एक जाफरी टट्टी की पर्देदार कोठरी बनी हुई थी। उसी कोठरी में लेजाकर उन दोनो ने मुझे खूब नहलाया; और जब मैं नहा चुकी तो मैने वही कपड़ा फिर पहिर लिया, जो कैद होने पर मुझे
पहिराया गया था। फिर वे दोनो मुझे जनाँने किते की ओर वाली
उस कोठरी के पास ले आईं, जो अब मेरे रहने के लिये ठीक
की गई थी। मैने उस कोठरी के पास आकर क्या देखा कि जेलर
साहब वहां पर मौजूद हैं ! मुझे देखफर जेलर साहब ने उन दोनो
औरतों और कांस्टेबिलों को तो वहांसे विदा किया और मेरे सथ
बे उस कोठरी के अन्दर घुसे । ओहो ! उस कोठरी के अन्दर
घुसते ही मैने क्या देखा कि वह छः हाथ की लंबी-चौड़ी एक
चौकोर कोठरी है और उसकी पांटन भी छः हाथ के लगभग