मैंने पुन्नी से कहा—"लो, तुम्हारे दस रुपये मैंने खर्च डाले।"
यह सुन पुन्नी और मुन्नी एक साथ बोल उठीं,—"ऐं! सरकार! यह क्या बात है! वह सुदामा को तंदुल आपके चरणों में चढ़ा दिया गया है।
इस पर सुकुमारी ने मुस्कुराकर कहा—"तो वह फल फूला कर कई गुना तुम दोनों क पास पहुंच जायगा।"
मैंने पुन्नी से पूछा—"तुमने क्या वे दस रुपये अपने मकान मालिक को दे दिये?"
पुन्नी ने कहा,—"जी हां! उनका कई महीने का भाड़ा भी तो बाकी है, उन से सरकार ने कह दिया है कि पुन्नी मुन्नी अब से मेरे घर प्रयागराज में रहेंगी और कुछ दिनों पीछे कानपुर आकर आपका मकान खाली कर जायंगी।"
सुकुमारी ने कहा—"यानी शादी होजाने के बाद?"
अस्तु; बातकी बात में हम सब सरसैयाघाट पर पहुंच गई। कानपुर में यह बहुत ही अच्छी रीति है कि स्त्रियों के नहाने का घाट अलग है! अहा! बहुत दिनों पर गंगा महारानी के दर्शन पाकर मेरे रोम रोम प्रसन्न होगए, मैंने भक्तिभाव से भागीरथी को प्रणाम किया और पहिले सिरपर जल डाल कर तब भी जब पैर रक्खा। इतने ही में चुन्नी एक कपड़ोंकी गठरी पैसे और मिठाइयोंका टोकरा देगया था साथ ही वे दस रुपए भी फेर गया था, जो मैंने दिये थे।
खैर, मैंने कई गोते लगाए, पिता-माता को जलाज्जुलि दी, सूर्यभगवान को अर्घ्य दिया, स्वयं तीन आचमन किया और जेलर