ने हज़ार कानों से हम लोगों की बिनती सुनली। अब हम दोनों बहिनें जीतेजी आपके इन चरणों को छोड़कर कहीं नहीं जायगी।"
यह सुन और चकपका कर मैंने पारी पारी से उन दोनों की ओर देखा और पुन्नी से यों पूछा,—"क्यों, क्या बात है? जेलर साहब ने तुम दोनों को क्यों बुलाया था!"
यह सुन कर वे दोनों बहने खूब खिल खिला कर हंस पड़ी और पुत्री ने कहा,—"सुनिये,—बड़ी खुशी की बात है। अब हम दोनों आपका चरन छोड़कर कहीं नहीं जा सकतीं।"
मैंने कह्य,—"पहेली न बुझाओ और साफ साफ कहो कि बात क्या है!"
पन्नी बोली,—"जी साफ और सच्च बात तो तभी कही जायगी, जब आप हम दोनों को अपने चरनों में रखने की प्रतिज्ञा करेंगी।"
यह सुनकर मैं हंस पड़ी और कहने लगी,—"वाह, मेरे चरण मानों घर द्वार ठहरे।"
पुन्नी,—"अब टाल-मटूल रहने दीजिये और झटपट यह प्रतिज्ञा कीजिये कि हम दोनों को अपने चरनों की छाया से अलग तो न करियेगा!"
वह सुनकर कुछ देर तक मैं कुछ सोचती रही और फिर बोली,—"अच्छी बात है! अगर भगवान मुझे इस कैद से छुट्टी देंगे तो मैं तुम दोनों को खुद अपने पास से अलग न करूंगी।"
यह सुनते ही वे दोनों एक साथ कह उठी,—"भगवान को कोटि कोटि धन्यवाद है कि उस परमात्मा ने बेकसूर जानकर आपको इस सांसत से छुड़ा दिया।"
"ऐ! क्या यह सच है!!!" इतना कहते कहते मैं चक्कर खाकर वहीं पर लुढ़क गई।
जब मुझे चेत हुआ तो मैंने क्या देखा कि,—"मेरा सिर