हैं? क्यों कि मैं यह चाहती हूं कि ये दोनों अपने मकान के मालिक से मेरे सामने ही बात चीत करें।"
यह सुनकर जेलर साहब ने कहा,—"अच्छी बात है, मैं उन्हें यहीं भेज देता हूं।"
यों कहकर जेलर साहब चले गए और थोड़ी ही देर में एक सिपाही के साथ एक बूढे ब्राह्मण देवता आए। उन्हें देखकर पुन्नी और मुन्नी ने जमीन में माथा टेक कर पालागन किया, मैंने भी प्रणाम किया और तब असीस देकर उन्होंने यों कहना प्रारम्भ किया,—"बेटी पुन्नी और मुन्नी! अब तक तो हम लोग यही समझे थे कि तुम दोनों या तुममें से किसी एक ने उस दुष्ट लूकीलाल की डिबिया चुराई होगी! पर यहां आकर और तुम दोनों से टंटा करके उसने जो जुर्माना दिया, उसकी बात सारे शहर में खूब तेजी के साथ फैल गई हैं। अब सभी लोग उस पर थूकते और बेकसूर समझकर हजार मुंह से तुम दोनों की बड़ाई करते हैं। कल पहिली अप्रैल है और मैंने अभी जेलर साहब से यह बात सुनी है कि कल सुबह सात बजे तुम दोनों छोड़ दी जाओगी। यह बड़ी खुशी की बात हुई कि मैं ठीक समय पर यहां आया, इस लिये अब कोई चिन्ता की बात नहीं। कल बड़े तड़के मैं खुद और महल्ले के कई आदमी आवेंगे और तुम दोनों को घर लिवा ले जायंगे। हम लोगों ने तुम दोनों के लिये एक बहुत अच्छी नौकरी भी ठीक करली है और इस बात का भी पूरा पूरा प्रबन्ध कर लिया है कि अगर अबकी बार लूकीलाल तुम दोनों या तुममें से किसी को भी छेड़ेगा तो उसकी नाक काट ली जायगी। तुम दोनों मुलई-महाराज को तो जानती ही हाे कि वे महल्ले में के दबंग आदमी हैं। सो तुम्हारा हाल सुनकर वे लूकी पर बहुत ही बिगड़े हैं और उन्हों ने लूकी के घर जाकर उससे यह बात जोर देकर कहदी है कि, अगर अब तू पुन्नी-मुन्नी को ज़रा भी छेड़ेगा तो सरे बाज़ार