यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(१६१)
सात खून।
घबराना चाहिये । मैं तुम्हारे पिता की उम्र का और ब्राह्मण हूं, इस लिये तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि बहुत जल्द नारायण तुमको इस सांसत से छुटकारा देगा।
इतना कहते कहते सदाशय जेलर साहब ने अपनी आँखें पोछीं। हम तीनों, अर्थात् पुन्नी, मुन्नी और मैंने भी अपने अपने उमड़ते हुए आंसुओं के बेग के रोका और अपना जी दूसरी ओर ले जाने के लिये जेलर साहब से यों कहा,-" फल लूकीलाल का तमाशा मैं भी देख सकती हूं?"
"हां, हां जरूर ।” यों कहकर जेलर साहब चले गए और उनके जाते ही पुन्नी और मुन्नी ने छेड़ खानी करनी शुरू करदी । पर आज सिवाय हँसने के मैंने उन दोनों से और कुछ न कहा।"
_________