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सात खून


जवानी तुम्हारे छुटकारे के मद्धे सब हाल सुना तो फिर तुम्हे देखे बिना मुझसे न रहा गया। यह बात तुम जानती हो कि मैं बड़ा गरीब ब्राह्मण हूं और समाज में धनवानों की तूती बोलती है। यदि आज मैं बड़ा आदमी होता तो तुम्हें अपनाने की हिम्मत कर सकता था, पर इस अवस्था में अपने उन उजड्ड, मूर्ख और जात्याभिमानी भाइयों पर मैं क्या दवाब डाल सकता हूं! मैंने अपने भरसक इस बात के लिये बहुत दौड़ धूप की कि जेल से छूटने पर मैं तुम्हें अपने घर लेजाऊं और अपने साले के लड़के के साथ तुम्हारा विवाह भी कर दूँ, पर मैं क्या करूं? क्योंकि जात-वाले पंच सरपंच अब तुमको जात में नहीं लेना चाहते और तुम्हे अपनाने पर मुझे भी जात बाहर कर देना चाहते हैं। ऐसी दशा में मैं अब क्या कर सकता हूँ? मेरे साले का एक लड़का है, वह बीस बरस का है और अभी तक उसका ब्याह नहीं हुआ है। आज से आठ बरस पहिले मैंने उसके साथ तुम्हारा व्याह करदेने के लिये भाई विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को बहुत समझाया था, पर वे राजी न हुए और मुझसे लड़ पड़े। तबसे मैं तुम्हारे यहां नहीं आता था, पर जब तुम्हारी बिपत्ति का हाल सुना तो मुझसे न रहा गया और मैं आया। आया तो सही, पर सिवाय जगह जमींन के और कुछ भी हाथ न लगा। फिरभी मैंने तुम्हारे पिता का आद्ध भली भांति कर दिया और जगह जमींन पर दखल हासिल किया। यह सब हुआ, पर हाय, मुझ अधम से तुम्हारा उद्धार न हो सका, इसका मुझे मरते दम तक दुःख रहेगा।"

चचा की इतनी लम्बी चौड़ी बातें, सुनकर मैंने कहा,—"तो फिर मेरा कहां ठौर ठिकाना होगा?"

इस पर वे कहने लगे,—"सुनौ बेटी! बारिष्टर दीनानाथ मेरी जाति के ही हैं, पर विलायत हो आने के कारण जात वाले अब उन्हें नहीं बरतले। वे बड़े विद्वान्, धन कमाने वाले, नव युवक