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सात खून।


हम दोनों लौंडियों को अपने चरनों में न रख सकेंगी?"

मैंने कहा,—"पुन्नी! तू बावली हुई है। भला सोचतो सही कि यदि मैं छूटभी गई तो मैं भी कहां पर खड़ी होऊंगी? क्योंकि मेरे लिये भी धरती पर कहीं स्थान नहीं है!"

इसपर शैतान पुन्नी ने हंसकर कहा,—"चाहे धरती पर आप को स्थान न हो, पर किसी के दिल में तो आपके लिये बहुतसी जगह है?"

यह सुनकर मैंने उसके गाल में एक थप्पड़ जड़ दिया और कहा,—"बस, चुप रह जादे शरारत न कर!"

यह सुनकर उसने कहा,—"क्यों सरकार, तो फिर बारिष्टर साहब को आप कुछभी मेहनताना न देंगी?"

"तेरा सिर दूंगी"—यों कहकर मैंने उसे ढकेल दिया, पर वह फिर उठ बैठी और हँसकर कहने लगी,—"खैर, मेरा सिरतो आपके कदमों पर चढ़ही चुका है, इसलिये इसका आप जो चाहे सो कीजियेगा, पर सच बताइये, उनको क्या दीजियेगा?"

इसपर मैंने झुंझलाकर उससे कहा,—"पुन्नी तू क्या इसीलिये यहाँ रक्खो गई है कि बे सिर पैर की बातें करके मेरे जी को जलावै? इस लिये अब तू सोजा। क्योंकि आधीरात बीत चली और पहरा भी बदल गया। तू जरा सोचतो सही कि मैं फांसी का हुक्म पाए हुई एक अभागिन औरत हूं। ऐसी हालत में इस जेल के अन्दर इस तरह की बातें नहीं भली लगतीं।"

मेरी बातें सुनकर पुन्नी मेरे पैरों पर गिर कर बार बार मुझसे क्षमा मांगने लगी। आखिर, मैंने उसे गले से लगाकर जरा सा मुस्कुरा दिया और इसके बाद हम दोनों ने लम्बी तानी।

बाहर पहरे पर जो सिपाही था, वह हम लोगों की बाते नहीं सुन सकता था, क्योंकि वह जरा सा दूर था और बाते धीरे धीरे होती थीं। खैर, थोड़ी देर में मुन्नी की तरह पुन्नी भी नाक

 

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