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खूनी औरत का


निकल कर सदर दरवाजे की तरफ बढ़ी, तब लूकीलाल ने तेजी के साथ अपने बैठक में से निकल कर ज़ोर से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने बैठक में खींच लेजाना चाहा। यह देख मुन्नी ने अपने हाथ की तरकारी की पथरी ऐसे ज़ोर से उसके माथे में खैंच मारी कि उसका सिर फूट गया, झर झर झर झर खून बहने लगा और वह चक्कर खाकर वहीं पर गिर गया! यह हाल देखकर मैं तो बहुत डरी, पर ढीठ मुन्नी ने फिर वहां पर जरा भी दम न लिया और मुझे खींचे हुई वह उस मकान के बाहर निकल अपने घर की . ओर चल पड़ी। खैर, हम दोनों अपने घर पहुंची और घर में दीया बाल और बैठकर मैंने मुन्नी से कहा,—"अरे, यह तूने क्या किया?"

मुन्नी ने तनकर यों कहा,—"जो किया सो अच्छा ही किया। उस पापी के पाजीपन का यही इनाम था। मैं कहती थी कि जीजी! अब उस घर का मुंह काला करके दूसरा धंधा देखो, पर तुमने लौंगिया की चिकनी चुपड़ी में आकर मेरा कहना नहीं माना पर नहीं माना। अन्त में आज यह बखेड़ा आखिर खडा होगया न! अब कल से दूसरा धंधा देखो और उस घर पर झाडू मारो।"

यों कहकर देर तक मुन्नी झनक-पटक करती रही, पर फिर मैंने उससे कुछ न कहा। थोड़ी देर में जब उसका गुस्सा कुछ कम हुआ, तब हम दोनो बहिनों ने कुछ खा पीकर लम्बी तानी। दूसरे दिन बडे तड़के उठकर हम दोनों बहिनों ने अपनी कोठरी और दालान की झार बुहार शुरू की और फिर चौका चूल्हा लीप पोत और नहा धोकर नौ बजते बजते चूल्हे में आंच बाली ही थी कि इतने ही में पांच चार कांस्टेबिलों को लिये हुए लूकीलाल मेरे घर में घुस आया, और उन सिपाहियों को हम दोनों की ओर दिखला कर यों कहने लगा,—"तुम लोग इन दोनों चोट्टियों को गिरफ्तार करलो। इतने में दराेगाजी भी आजांयगे, तब इसके