पर उस कोठरी में से, जिसमें कि चार-चार लाशे पाई गई थीं, के तलवारें बरामद हुई हैं ?"
मेरी ऐसी बातें सुन, हाकिम ने कोतवाल साहब की ओर देखकर उनसे यो पूछा,--" क्यों साहब, उस कोठरी में के तलवार पाई गई?"
इस पर कोतवाल साहब ने यों कहा- हुजूर, उस कोठरी में से चार तलूवारे बरामद हुई थीं।"
हाकिम,--( मुझसे)" तुमने अपने सवाल का जवाब पाया न?,
इस पर मैंने कहा,--"अच्छा, हुजर ! अब आपही न्याय करिये कि जिस कागज में मेरे अंगूठे की छाप लग रही है, वह कैसे सच्चा समझा जा सकता है ? क्योंकि उस अंगूठे की छाप वाले परचे में तो सिर्फं एक तलवार का ज़िक्र है, मगर उस खूनवाली कोठरी में से चार तलवारों का पाया जाना हुजूर के सामने अभी कोतवाल साहब ने मंजूर किया है। क्या,इतनी बडी भूल-कोतवाल साहब की भूल,का फायदा मैं नहीं उठा लकती?"
यह सुनकर मजिस्टर साहब ने कोतवाल साहब की ओर देखा, जिसपर उन्होंने यों कहा कि,-"हुजूर, मैं एक पुराना कारगुज़ार मुलाज़िम हूं और इस लड़की के साथ मेरी कोई दुश्मनी नहीं है। फिर भला, मैं इसे नाहक फैलाने की नीयत से कोई बेजा कारवाई क्यों करूंगा! पस, मेरे आगे जो कुछ बयान इस नौ उमू औरत ने दिया, वही ज्यों का त्यों हुजूर की खिदमत में पेश किया गया। अंब रही सलवार की बात, लो, उसके बारे में यह अर्ज है कि के चारों तलवारें इसके मकान ले लाई जाकर कोतवाली में रक्खी हुई है और रजिष्टर में दर्ज भी की जा चुकी हैं। हां, इसमें उनका जिक्र करना रहगया ।
कोतवाल के चुप होते ही मैंने हाकिम की ओर देखकर यो कहा,--"लेकिन, यह गलती ज़रूर हुई है कि उन चारों तलवारों