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सात खून


नहीं उठाना पड़ा। जब भीड़ छट गई, तब मैंने देखा कि अब उस कमरे में पंद्रह-बीस आदमी बाकी रह गए हैं। यह देखकर मैंने आप हो आप यह समझ लिया कि, 'ये लोग वकील-मुखतार होंगे!' उन वकील-मुखतारों में वह काला कलूटा भी था, जिसकी सांप सी डरावनी आँखे मुझे बुरी तरह घूर रही थी!

अस्तु, अब यह सुनिए कि मजिष्टर साहब के हुक्म से पेशकार साहब कोतवाल साहब के दिए हुए कागजों को सिल-सिलेवार फिर पढ़गे लगे, और जब ये सच कागजों को सुना गए, तब हाकिम ने उन कागजों को ले और उन्हें उलट-पलट कर देखना और कुछ लिखना प्रारम्भ किया। मुझसे अभी कुछ भी पूछा नहीं गया था और बोलने की भी मुझे मना ही थी, इसलिये मैं चुपचाप कभी हाकिम की ओर, कभी कोतवाल की ओर और कभी वहां पर मोजूद वकील-मुखतारों की ओर देखती और मन ही मम भगवती का स्मरण करती जाती थी।

योंही देर तक उन कागजों के देखने और कुछ लिखने के बाद हाकिम ने यहां पर मौजूद कोर्टइन्सपेक्टर से यों कहा,—"इस खूनी औरत को जेल भेजों और कल अव्वल वक्त में इस असामी को यहा हाजिर करो।"

इस हुकुम को सुनकर कोर्टइन्सपेक्टर चार कांस्टेबिलों के घेरे में मुझे करके कचहरी से बाहर हुए।

बाहर बाग पर मैं फिर एक किराये की गाड़ी पर सवार कराई गई और कोर्टइन्सपेक्टर चार कांस्टेबिलों के साथ जेलखाने पहुंचाई गई। जेल के अन्दर घुसने पर मैं जेलर साहब के जिम्मे की गई गौर उन्होंने मुझे एक तंग कोठरी में बन्द कर दिया।

कुछ दिन रहने पर मुझसे रसोई खाने के लिये कहा गया, पर जब मैंने केवल कच्चा दूध मांगा, तो इसका कोरा जवा दिया गया और सारी रात मैं बिमा दाने-पानी के रक्खी गई। किन्तु