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सात स्थून


जोर से उसका गला भींचा कि वह आखिर मर ही गया! जब मैंने इस बात का यकीन कर लिया कि, 'अब यह कम्बख्त मर गया होगा।' तब मैं उसके गले को छोड़ कर उसकी छाती पर से हटी। फिर दीया लेकर जब मैंने अच्छी तरह से उसे देखा तो सचमुच मुरदा पाया! यह देख और दीया आले पर रख कर मैं उस कोठरी से बाहर हुई और एफ दूसरो कोठरी में जाकर टहलने लगी। उस समय मुझे ऐसा जाग पड़ा, मानो मेरे घर में कई भादमी घुसे हुए मापस में कुछ कानाफूली कर रहे हैं! यह जान कर मैं जरा डर गाई, पर फिर तुरंत ही मैंने अपना जी कड़ा कर और अपने हरवाहों का नाम लेकर उन्हें पुकारना शुरू किया। मेरे चार हरवाहे थे और का नाम यह था,—(१) फलगू, (२) ढोंढा, (३) घोंघा, (४) कालू। बस, इन्हीं चारों का नाम लेकर बार-बार मैं पुकारने लगी। उस समय तो मेरी पुकार पर कोई न बोला, पर थोड़ी ही देर में चार आदमियों ने मेरी कोठरी में आकर मुझे घेर लिया और मुझसे बहुत ही गन्दी-गन्दी बातें करनी शुरू की। यह रंग-ढंग देख कर पहिले तो मैं बहुत ही डर गई, पर फिर कुछ साेच-साथ कर मैंने अपने जी को पाेढ़ा किया और उन सभोंसे यों कहा,—'अच्छा, तुम सभों की बातें मुझे मंजूर हैं। इसलिये तुम-सभों में से तीन आदमी तो यहीं रहो और एक मेरे साथ दूसरी कोठरी में चलो।' यह सुन कर उन चारों पापियों में से तीन तो उसी कोठरी में ठहरे रहे और चौथा, जिसका नाम धाना था, मेरे साथ हुगा। उसे मैं रसोई घर में ले गई। वहां जाकर मैने अपने बाप की तल्वार, जो मेरे पास थी, हाथ में लेकर इस जोर से उसकी गर्दन पर मारी कि वह बिना "चूं" किए ही 'रुण्ड-मुण्ड' होकर धरती में गिर गया। यह हाल देख कर एक बेर तो मैं कांप उठी, पर फिर धीरे धीरे अपने जी की धड़कन दूर फर और कुछ देर ठहर फर मैने वहीं से परसा को आवाज दी। मेरी पुकार सुनतेही